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________________ तीर्थंकर चरित-भूमिका क्षेत्र हैं। धातकी खण्डमें इन्हीं नामोंके इनसे दुगने क्षेत्र हैं और धातकी खन्डके बराबर ही पुष्करा में हैं। इनमेंके आरंभके यानी भरत, ऐरवत और महाविदेह कर्म-भूमिके क्षेत्र हैं और बाकीके अंकर्म-भूमिके । इन्हीं कर्म-भूमिके पंद्रह क्षेत्रोंमें,-पाँच भरत, पांच ऐरवत, और पांच विदेहमें, इन आरोंका प्रभाव और उपयोग होता है, और क्षेत्रोंमें नहीं। __ महाविदेहमें केवल चौथा ' आरा' ही सदा रहता है। भरत और ऐरवतमें उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीका ब्यबहार होता है । प्रत्येक आरेमें निम्न प्रकारसे जीवोंके दुःख सुखकी घटा बढ़ी होती रहती है। १-एकान्त सुषमा-इस ओरमें मनुष्योंकी आयु तीन पल्योपम तककी होती है। उनके शरीर तीन कोस तक होते हैं भोजन वे चार दिनमें एक बार करते है । संस्थान उनका 'समचतुरस्र ' होता है । संहनन उनका 'वज्र ऋषभ नाराच' १-जहां असि (शस्त्रका) मसि (लिखने पढ़ने का) और कृषि ( खेतीका) व्यवहार होता है उसे कर्मभूमि कहते हैं। __२-जहां इनका व्यवहार नहीं होता है और कल्प वृक्षोंसे सब कुछ मिलता है उन्हें अकर्मभूमि कहते है ॥ ३-संस्थान छः होते हैं । शरीरके आकार विशेषको संस्थान कहते हैं । (१) सामुद्रिक शास्त्रोक्त शुभ लक्षणयुक्त शरीरको ‘समचतुरस्त्र' संस्थान कहते हैं । (२) नाभिके ऊपरका भाग शुभ लक्षण युक्त हो और नीचेका हीन हो उसे 'न्यग्रोध' संस्थान कहते हैं। (३) नाभिके नीचेका भाग यथोचित हो और ऊपरका हीन हो उसे 'सादी' संस्थान कहते हैं । (४) जहाँ हाथ, पैर, मुख, गला आदि यथा लक्षण हों और छाती, पेट, पीठ आदि विकृत हों उसे 'वामन' संस्थान कहते हैं । (५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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