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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
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(६) एकान्त दुःखमा । इसी तरह उत्सर्पिणीके उल्टे गिननेसे छः भेद होते हैं । अर्थात् (१) एकान्त दुःखमा (२) दुःखमा (३) दुःखम सुषमा (४) सुषम दुःखमा (५) सुषमा, और (६) एकान्त सुषमा । इन्हीं बारह भेदोंका समय जब पूर्ण होता है तब कहा जाता है कि, अब एक. कालचक्र समाप्त हो गया है।
नरक, स्वर्ग, मनुष्य लोक और मोक्ष ये चार स्थान जीवोंके रहनेके हैं । उनमें से अन्तिम स्थानमें अर्थात् मोक्ष में तो केवल कर्म-मुक्त जीव ही रहते हैं। वाकी तीनमें कमलिप्त जीव रहते हैं। नरकके जीवीके चौदह (१४ ) भेद किये गये हैं । स्वर्गके जीवोंके एकसौ अठानवे (१९८) भेद किये गये हैं और मनुष्य लोकके जीवोंके ३५१ भेद किये गये हैं। मनुष्य लोकके कुछ क्षेत्रोंमें 'आरों का उपयोग होता है। इसलिये हम यहाँ मनुष्य लोकके विषयमें थोडासा लिख देना उचित समझते हैं।
मनुष्य लोकमें मुख्यतया ३ खंडोंमें मनुष्य बसते हैं। (१) जम्बू द्वीप (२) धातकी खण्ड और (३) पुष्कराई । जंबुद्वीपकी अपेक्षा धातकी खण्ड दुगना है और पुष्करार्द्ध, धातकी खण्डकी बराबर ही है । यद्यपि पुष्कर द्वीप धातकी. खण्डसे दुगना है तथापि उसके आधे हिस्सेहीमें मनुष्य बसते हैं इसलिए वह धातकी खण्डके बराबर ही माना जाता है । जंबुद्वीपमें,-भरत, ऐरवत, महाविदेह, हिमबन्त, हिरण्यवन्त, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, देवकुरु और उत्तर कुरु, ऐसे नौ,
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