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________________ २४ श्री महावीर स्वामी- चरित ३४३ वहाँसे विहार कर प्रभु हरि नामक गाँव में गये और वहाँ हरि वृक्षके नीचे प्रतिमा धारण कर रहे । वहाँ कोई संव आया था और रातको आग जलाकर रहा था । बड़े सवेरे आग बुझाये बिना लोग चले गये । आग सुलगती हुइ भगवानके पास पहुँची । गोशालक भाग गया; परंतु प्रतिमाधारी भगवान वहाँसे न हटे और उनके पैर झुलस गये । हरिसे विहार कर प्रभु लांगल गाँवमें गये और वहाँ प्रतिमा धारण कर वासुदेव के मंदिर में रहे । हरिसे बिहारकर प्रभु आवर्त्त नामक गाँवमें आये और वहाँ बलदेवके मंदिर में प्रतिमा धारण कर रहे । आवर्त गाँव से विहार कर प्रभु चोराक गाँव में आये और वहाँ एकांत स्थानमें प्रतिमा धर कर रहे । करवा दिया। गोशालक स्थानपर पहुँचा । सिद्धार्थने उसे खीरकी सारी बात कही। उसने उल्टी की तो उसमेंसे नखोंके छोटे टुकड़े आदि निकले । गोशालक बड़ा नाराज हुआ और पितृदत्त के घर गया, परंतु घरका रूप बदल गया था इसलिए उसे घर न मिला । तब उसने शाप दिया: – “ यदि मेरे गुरुका तप हो तो यह सारा मुहल्ला जल जाय ।" किसी व्यंतर देवने महावीर स्वामीकी महिमा कायम रखनेके लिए सारा मुहल्ला जला दिया । C १ – यहाँ गोशालक ने लड़कोंको डराया, इसलिए उनके मातापिताने गोशालकको पीटा । वृद्धोंने प्रभुका भक्त जान छुड़ाया । २ – यहाँ भी बालकों को डरानेसे गोशालक पीटा गया । कुछने सोचा इसके गुरुको मारना चाहिए । वे महावीरको मारने दौड़े। तब किसी अर्हतभक्त व्यंतरने बलदेवकं शरीरमें प्रवेशकर महावीरकी रक्षा की । । ३ – गोशालक यहाँ भिक्षार्थ गया । एक जगह गोठके लिए रसोई हो रही थी । गोशालक छिपकर देखने लगा कि, रसोई हुई या नहीं ? इसको छिपा देख लोगोंने चोर समझा और पीटा। गोशालकने शाप दिया: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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