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________________ ३४४ जैन-रत्न wwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm वहाँसे विहार कर प्रभु कलंबुक नामक गाँवमें गये । वहाँ मेघ और कालहस्ति नामके दो भाई रहते थे । उस समय चोरोंको पकड़नेके लिए कालहस्ती जारहा था । महावीर स्वामी और गोशालकको उसने चोर समझा और पकड़कर भाईके सामने खडा किया। मेघ महावीरको पहचानता था, इसलिए उसने उन्हें छोड़ दिया। __महावीर स्वामीने अवधिज्ञानसे जाना कि, अब तक मेरे बहुतसे कर्म बाकी हैं । वे किसी सहायकके बिना नाश न होंगे । आर्य देशमें सहायक मिलना कठिन जान उन्होंने अनार्य देशमें विहार करना स्थिर किया। कलंबक गाँवसे विहार कर प्रभु क्रमशः अनार्य लाट देशमें पहुँचे । लाट देशके निवासी क्रूरकर्मी थे । उन्होंने महावीरके ऊपर घोर उपसर्ग किये। उपसगोंको शांतिसे सहकर महावीरने अनेक अशुभ कर्मोंकी निर्जरा की । गोशालकने भी प्रभुके साथ अनेक कष्ट सहे। पूर्णकलश नामक गाँवमें जाते समय चोर मिले। चोरोंने अपशकुन हुए जान दोनोंको मारनेके लिए तलवार निकाली। इन्द्रने चोरोंको मार डाला। __पूर्ण कलशसे विहार कर प्रभु भदिलपुर आये। और विक्रम “अगर मेरे गुरुके तपका प्रभाव हो तो इन लोगोंका स्थान जल जाय।" महावीरके भक्त व्यंतरने स्थान जला दिया । १-सहायकका अर्थ उपसर्ग-कर्ता है । जितने अधिक उपसर्ग होते हैं उतने ही अधिक जल्दी कर्मोंका नाश होता है । शर्त यह है कि उपसर्ग शांतिसे सहे जायें। २-कल्पसूत्रमें 'भाद्रिकापुरी' और विशेषावश्यकमें 'भद्रिका नगरी' लिखा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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