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जैन-रत्न
सूर्योदय होनेपर प्रभु वहाँसे विहार कर श्रावस्ती नगरीमें आये और कायोत्सर्ग करके नगरके बाहर रहे। बोला:-"ये पाखंडी कौन हैं कि जिनकी औरतें भी शराब पीती हैं और इस तरह मत्त होकर नाचती हैं।" यह सुनकर दरिद्र स्थविर गुस्से हुए
और उन्होंने गोशालकको गर्दनिया देकर बाहर निकाल दिया । माघका महीना था और सर्दी जोरकी पड़ रही थी। गोशालक सर्दीमें सिकुड़ रहा था और उसके दाँत बोल रहे थे । स्थविरोंने उसे माफ किया और अंदर बुला लिया। जब उसकी सर्दी मिटी तब उसने फिर वही बात कही। उन्होंने फिर निकाला, फिर बुलाया । उसने पुनः वही बात कही । फिर उसे निकाला, फिर बुलाया । तब वह बोला:-" अल्प बुद्धि पाखंडियो ! सच्ची बात कहनेसे क्यों नाराज होते हो ? तुम्हें अपने इस दुष्ट चरित्रपर तो क्रोध नहीं आता और मुझ सत्य भाषीपर क्यों क्रोध आता है ?" जवान उसे मारने दौड़े; परंतु वृद्धोंने उन्हें यह कहकर मना किया कि यह इन महात्माका सेवक मालूम होता है। इसकी बातोंपर कुछ ध्यान न दो:
१ गोशालकने प्रभुसे कहा:-" चलिए गोचरी लेने ।" सिद्धार्थ बोला:-" आज हमारे उपवास है।" गोशालकने पूछा:-" आज मुझे कैसा भोजन मिलेगा ?" सिद्धार्थ बोला:-" आज तुझे नरमांसवाला भोजन मिलेगा।" गोशालक यह निश्चय करके चला कि मांसकी गंध भी न होगी ऐसी जगह भोजन करूँगा।"
श्रावस्तीमें पितृदत्त नामका एक गृहस्थ रहता था। उसके श्रीभद्रा नामकी स्त्री थी। उसके हमेशा मरी हुई संतान पैदा होती थी। उसे शिवदत्त निमित्तियाने कहा कि मरे हुए बच्चेका मांस रुधिर सहित घी और शहद व दुग्धमें डालना और उसे पकाकर किसी भिक्षुकको खिला देना : भद्राने उस दिन वैसी ही खीर तैयार कर रक्खी थी। गोशालक फिरता हुआ वहीं पहुँचा
और भद्राने उसे वह खीर खिला दी। सुभद्राने पाहिलेहीसे घरके नया दर्वाजा बना रक्खा था। गोशालकके जाते ही नया दर्वाजा खोल दिया और पुराना दर्वाजा बंद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com