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________________ जैन-रत्न २९८ rammarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr भाइयोंमें गाढी प्रीति हो गई। बड़े सुखसे त्रिपृष्ठ बाल्यकालको व्यतीत कर युवावस्थाको प्राप्त हुआ। जब वह जवान हुआ तब उसका शरीर प्रमाण अस्सी धनुष था । उस तरफ रत्नपुर नगरके मयूरग्रीव नामक राजाकी नीलाजना नामक रानीके गर्भसे अश्वग्रीव नामक प्रति वासुदेवका भी जन्म हो चुका था। वह बड़ा पराक्रमी, एवं रणनिपुण था। धीरे २ उसकी वीरताकी धाक सब राजाओंपर बैठ गई। प्रायः सभी राजा उसके आधीन हो गये । समयपर प्रति वासुदेवका चक्र भी उसकी आयुधशालामें उत्पन्न हुआ । उसके प्रभावसे अश्वग्रीवने भरत क्षेत्रके तीन खंडोंपर विजय पताका फहरा दी । मागध वरदाम आदि तीर्थदेवोंसे भी उसने अपना आधिपत्य स्वीकार कराया । ___ एक बार उसने अश्वबिन्दु नामक नैमेत्तिकको बुलाकर अपना भविष्य पूछा । अश्वबिन्दुने बड़ी आनाकानीके बाद कहाः-"गजन् आपके चंडवेग नामक दूतको जो पीटेगा और तुंगगिरिमें रहनेवाले केसरी सिंहको जो मार डालेगा उसीके हाथसे आपकी मौत होगी।" यह सुनकर अश्वग्रीव बड़ा चिन्तित हुआ । उसने शत्रुका पता लगानेके लिए तुंगगिरिके पासके शखपुर प्रदेशमें शालीके खेत तैयार कराये और उनकी रक्षा करनेके लिए वह अपने अधीनस्थ राजाओंको भेजने लगा । एक बार उसको पता लगा कि, पोतनपुरके दो राजकुमार बड़े बलवान हैं । उसे वहम हुआ किं, कहीं वे ही तो मेरे शत्रु नहीं हैं। उसने उनकी जाँच करनेके लिए अपने दूत चंडवेग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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