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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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रत्नसे मैं ब्याह करना चाहता हूँ|" राजाकी बात सुनकर सभी सन्नाटेमें आ गये। उनके मुँह उतर गये । किसीकी जबानमें शब्द नहीं था। राजा बोला:-"तुम्हीने सम्मति दी है कि मेरे राज्यमें जो रत्न हो उसका मैं स्वामी हूँ। अब चुप क्यों हो ? मैं इस समय तुम्हारी मौजूदगीमें गांधर्व विवाह करूँगा।" राजाने मृगावतीको बुलाकर शहरके सभी प्रतिष्ठित पुरुषोंकी उपस्थितिमें उससे गांधर्व विवाह कर लिया।
महादेवी भद्रा पतिके इस घृणित कार्यसे बड़ी लज्जित हुई और अपने पुत्र बलदेव अचलको साथ ले दक्षिणमें चली गई। राजकुमार अचलने अपने बल एवं पराक्रमसे माहेश्वरी नामक एक नया नगर बसाया। कुछ दिन वहाँरह शहरको व्यवस्थित कर वह अपने पिताके पास चला गया । और पिताके दोषकी उपेक्षा कर कह भक्ति सहित उनकी सेवा करने लगा। शहरके लोग राजाको रिपु प्रतिशत्रुकी जगह प्रजापति कहकर पुकारने लगे, कारण वह अपनी प्रजा-सन्तानका पति हुआ था।
राजाने मृगावतीको पट्टरानी पदसे सुशोभित किया। कालान्तरमें मरीचिका (विश्वभूतिका) जीव महाशुक्र देवलोकसे चयकर उसके गर्भ में आया। उस रात महादेवीने वसुदेवके जन्मकी सूचना देनेवाले सात शुभ स्वप्न देखे । समयपर एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ । उसके पृष्ठ भागमें तीन हड्डियाँ थीं, इसलिए उसका नाम त्रिपृष्ठ रक्खा गया । यही इस चौबीसीम प्रथम वासुदेव हुआ है । राजकुमार अचल अपने भाईको खेलाता और आनंदसे दिन बिताता । त्रिपृष्ठ बड़ा हुआ और दोनों
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