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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
भरतक्षेत्रके पोतनपुर नामक नगरमें रिपुप्रतिशत्रु नामक राजा
राज्य करते थे । उनकी पटरानी भद्राके त्रिपृष्ठ वासुदेवका भव गर्भसे चार स्वप्नोंसे सूचित एक पुत्र
जन्मा । उसका नाम 'अचल' रक्खा गया । उसके बाद भद्राने एक सुन्दरी कन्याको जन्म दिया। उसका नाम मृगावती रक्खा गया। धीरे २ यौवनने वसन्त ऋतुकी भाँति, मृगावतीपर अपना साम्राज्य स्थापित किया महादेवी भद्राको, अपनी प्रिय पुत्रीको यौवनवती देख उसके विवाहक चिंता हुई । एक दिन मृगावती अपने पिताको प्रणाम करने गई थी। उसके रूप लावण्यको देखकर राजा कामान्ध बना । मृगावतीको अपनी गोदर्म बिठा वह उसके गालोपर हाथ फैरने लगा। उसने मन ही मन उसके साथ विवाह करनेका निश्चय किया।
दूसरे दिन वह जब अपनी सभामें गया तब उसने शहरके सभी प्रतिष्ठित पुरुषोंको बुलाया और पूछा:-" मेरे राज्यमें कोई रत्न उत्पन्न हो तो उसका स्वामी कौन है ?" सबने कहा:" आप हैं" __राजाने फिर पूछा:-"मैं उसका स्वामी हो सकता हूँ " सबने जवाब दियाः-"हाँ महाराज, आप हो सकते हैं। " राजाने फिर पूछा:-"सोचकर कहो, क्या मैं उस रत्नका उपभोग कर सकता हूँ ?" वे क्या जानते थे कि राजा छल करके उनसे बातें पूछ रहा है । सबने शुद्ध भावसे कहा:-"हा कृपानाथ, आप कर सकते हैं ।" तब राजा बोला:-" मेरे घर जन्मे हुए कन्या
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