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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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को भेजा । चंडवेग बड़ा वीर पुरुष था । वह अपने दलबल सहित पोतनपुर पहुंचा और सीधा प्रजापतिकी राजसभामें चला गया। महाराज उस समय समस्त दारियों और दोनों राजकुमारोंके साथ संगीतकी मधुर ध्वनि सुननेमें मग्न थे । चण्डवेग के अचानक सभामें प्रवेश करनेसे राग रंग बंद हो गये, सभामें सन्नाटा छा गया और प्रजापतिने उसका यथायोग्य सत्कार किया । त्रिपृष्ठ इस नवागंतुकपर बड़ा नाराज हुआ । उसने अपने एक मंत्रीसे पूछा:-"यह कौन है ?" उसने जवाब दिया:-" यह अश्वग्रीव प्रति वासुदेवका पराक्रमी चण्डवेग दूत है ।" अभिमानी त्रिपृष्ठने कहा:-"इस दुष्टको मैं जरूर दंड दूंगा। यह चाहे कितने ही बड़े राजाका दूत हो, मगर इजाजत लिए बिना सभामें आनेका इसे कोई हक नहीं था।" मगर वहाँ वह कुछ नहीं बोला । उसने अपने आदमियोंसे कहा:-“यह जब यहाँसे विदा हो तब तुम मुझे खबर देना ।" ___ थोड़े दिनके बाद प्रजापतिने चंडवेगको विदा दी । राजकुमार त्रिपृष्ठको उसके जानेके समाचार दिये गये। दोनों भाइयोंने उसे मार्गमें जाते हुएको रोककर कहाः-" रे दुष्ट! रे मूर्ख ! तूने घमंडके मारे नियमोंका उल्लंघन कर राजसभामें प्रवेश किया है और हमारे राग-रंगमें विघ्न डाला है इसलिए आज तुझे इसकी सजा दी जायगी।" त्रिपृष्ठने तलवार निकाली । अचलने उसे ऐसा करनेसे रोका और अपने आदमियोंको इशारा किया। आदमियोंने चंडवेगसे हथियार छीन लिये और उसे. खब पीटा । चंडवेगके साथी सभी भाग गये।
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