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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित २९३ खूब उपदेश दिया और आसूर्य आदिको अपना शिष्य बनाया कपिल भी मरकर देवता हुआ। वहाँ अवधिज्ञानसे अपने पूर्व जन्मका हाल जानकर वह पृथ्वीपर आया और उसने आसूर्य आदिको अपने मतका नाम बताया । तभीसे 'सांख्य दर्शन प्रचलित हुआ । * ब्रह्मदेवलोकसे चयकर मरीचिका जीव कोल्लाक नामके गाँवमें अस्सी लाख पूर्वकी आयुवाला कौशिक ब्राह्मणका भव कौशिक नामका ब्राह्मण हुआ । उस भवमें भी उसने त्रिदंडी सन्यास धारण किया। उसके बाद मरीचिने अनेक भवोंमें भ्रमण किया। राजगृहमें विश्वनंदी नामका राजा राज्य करता था। उसके प्रियंगु नामकी रानीसे विशाखनंदी नामका विश्वभूतिका भव एक पुत्र था । राजाके विशाखभूति नामका छोटा भाई था । वह युवराज था। उसकी धारिणी नामा स्त्रीके गर्भसे, मरीचिका जीव, उत्पन्न हुआ। उसका नाम विश्वभूति रक्खा गया । विश्वभूति युवा हुआ तबकी बात है। एक बार वह अपने जनाने सहित पुष्पकरंडक नामके राजाके सुंदर बागमें क्रीडा __ * श्रीमद्भागवत हिन्दुधर्मका एक माननीय ग्रंथ है । उसम सांख्यमतकी उत्पत्ति इस तरह लिखी है,-"मनुजीकी कन्या देवहूती थी। उसके साथ कर्दम ऋषिका ब्याह हुआ । देवहूतीके गर्भसे नौ कन्याएँ और एक पुत्र हुआ । पुत्रका नाम कपिल था । कपिलजी चौबीस अवतारोंमेंसे पाँचवें अवतार हुए हैं। इन्होंने अपनी माता देवहूतीजीको ज्ञान करानेके लिए जो तत्त्वोपदेश दिया, वहीं तत्त्वोपदेश सांख्य दर्शनके नामसे प्रसिद्ध हुआ।".. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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