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________________ २९४ जैन-रत्न करने गया था । पीछेसे राजाका पुत्र विशाखनंदी भी उसी. वनमें क्रीडा करनेके इरादेसे पहुँचा; परन्तु विश्वभूतिको वहाँ जान उसे फाटकहीसे लौट आना पड़ा। उसने अपनी मातासे यह बात कही । रानी नाराज हुई और उसने विश्वभूतिको किसी भी तरहसे, बागसे निकालनेके लिए राजाको, लाचार किया । राजाने फौज तैयार करनेका हुक्म दिया और सभामें कहा कि, पुरुषसिंह नामका सामंत बागी हो गया है। उसका दमन करनेके लिए मैं जाता हूँ | विश्वभूतिको भी यह खबर पहुंचाई गई। सरल स्वभावी विश्वभूति तुरत सभामें आया और राजाको रोक आप फौज लेकर गया। ___ जब वह पुरुषसिंहकी जागीरमें पहुंचा तो उसने पुरुसिंहको आज्ञाधारक पाया । उसे आश्चर्य हुआ । वह वापिस आया और पुष्पकरंडक नामके बागमें गया, तो मालूम हुआ कि वहाँ. राजपुत्र विशाखनंदी आ गया है । विश्वभूति बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने द्वारपालोंको बुलाया और कहा:-" देखो, मुझे धोखा दिया गया है । अगर मैं चाहूँ तो तुम्हारा और राजकुमारका क्षण भरमें नाश कर मुझे धोखा देकर इस बागसे निकालनेकी सजा दे सकता हूँ।" फिर उसने फलोंसे लदे हुए एक वृक्षपर मक्का मारा । वृक्षके फल सब जमीनपर आ गिरे । फिर उसने द्वारपालोंको कहाः-" देखी मेरी शक्ति ? इन फलोंकी तरह ही मैं तुम लोगोंके सिर धड़से जुदा कर सकता हूँ परन्तु मुझे यह कुछ नहीं करना है । जिस भोगके लिए ऐसा छल कपट और बंधुद्रोह करना पड़े उस भोगको धिकार है।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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