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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २७९ उनके सामने आपका लड़ाईके लिए खड़े होना मानो शेरके सामने बकरीका खड़ा होना है। इसलिए आप अपनी जान बचाकर चले जाइए । वरना जिस मौतका आप बारबार नाम ले रहे हैं वह मौत आपको ही उठा ले जायगी।" ___ राजा यवनके दारियोंने तलवारें खींच ली और वे उस मुँहजोर दूतएर आक्रमण करनेको तैयार हुए । वृद्ध मंत्रीने उनको रोका और कहा:-" हे सुभटो ! दूत अवध्य होता है । फिर यह तो एक ऐसे महान् बलशालीका दूत है जिसकी इन्द्रादि देव पूजा करते हैं । सच मुच ही हम उनके सामने तुच्छ हैं।" फिर दूतको कहा:-"तुम जाकर पार्श्वकुमारसे हमारा प्रणाम कहना और निवेदन करना कि, हम आपकी सेवामें शीघ्र ही हाजिर होंगे।" दूत चला गया। फिर मंत्रीने राजा यवनको कहा:"महाराज ! अपने और दुश्मनके बलाबलका विचार करके ही युद्ध आरंभ करना चाहिए । मैंने पता लगाया है कि, पार्श्वकुमार और उनकी सेनाके सामने हम और हमारी सेना बिल्कुल नाचीज हैं । इसलिए हमारी भलाई इसीमें है कि, हम पार्श्वकुमारके पास जाकर उनसे संधी कर लें" राजा यवन बोलाः-"मंत्री! क्या मुझे और मेरी बहादुर सेनाको किसीके सामने सिर झुकाना पड़ेगा? मुझे यह बात पसंद नहीं है । इस अपमानसे लड़ाईमें मरना मैं अधिक पसंद करता हूँ।" वृद्ध मंत्रीने अति नम्र शब्दोंमें विनती की:-" महाराज ! नीति यह है कि, अगर दुश्मन बलवान हो तो उससे मेल कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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