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हिन्दी भाषा में जैन साहित्यका अभाव है । और उसमें भी चरित्र ग्रन्थ तो सर्वथा नहीं के बराबर हैं। इस अभावकी पूर्ति करनेका काम पाँच बरस पहले मैंने अपने निर्बल कंधोपर उठाया । बोझबहुत और शक्ति कम इसलिए इन पाँच बरसों में बहुत ही कम काम कर सका हूँ। तो भी मुझे संतोष है कि, मैं करीब ८ सौ पेजका ग्रन्थ पाठकों के भेट करनेमें समर्थ हुआ हूँ ।
मैं कह चुका हूँ कि, ग्रन्थमें दो विभाग हैं - पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध । पूर्वार्द्ध में प्राचीन जैन महापुरुषोंके चरित्र और उत्तरार्द्ध में वर्तमान सज्जनों और सन्नारियोंके परिचय देनेका विचार किया गया है । तद्नुसार जैनरत्नके प्रथम खंडमें—
( १ ) पूर्वार्द्ध में चौबीस तीर्थंकरोंके चरित्र हैं । ये चरित्र श्वेतांबर मूर्तिपूजक ग्रन्थानुसार दिये गये हैं । स्थानकवासी सम्प्रदाय मूर्तिपूजाकी बातोंके सिवा वे ही सब बातें मानता है जो श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाज मानता है । इसलिए मूर्तिपूजाकी घटनाओंको छोड़ देनेके बाद ये चरित्र सर्वथा स्थानकवासी सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार हो जायँगे ।
दिगंबर सम्प्रदायकी मान्यताके अनुसार घटनाओं में बहुतसा अंतर है । मेरा इरादा था कि दोनों सम्प्रदायों में जो अन्तर है उसका एक परिशिष्ट जोड़ दिया जाय; परंतु परिस्थितियों की अनुकूलता के कारण ऐसा करना स्थगित रखा गया है ।
( २ ) उत्तरार्द्धमें भगवान महावीरके पुजारी तीनों सम्प्रदायोंके अनेक सज्जनों और सन्नारियोंका परिचय है । यह परिचय गुणग्रहणकी
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