SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ट) इन बरसोंमें सद्गृहस्थोंकी जीवनियोंमें जो कई उल्लेखनीय घटनाएँ हो गईं हैं। और जो हमें मालूम हुई हैं उनमेंसे मुख्यके उल्लेख यहाँ किये जाते हैं। १-(क) सेठ वेलजी लखमसीको सन् १९३४ में इंडियन मर्चेटस चेम्बरने इंडिअन लेजिस्लेटिव एसेम्बली ( बड़ी धारासभा) के मेम्बर चुनना चाहा था। अगर ये जाते तो संभवतः ये ही इस सभाके पहले जैन मेम्बर होते; परंतु वेलनी सेठने वहाँ जाना स्वीकार न किया । (ख ) वेलजी सेठके छोटे भाई जादवजी सेठका सन १९३२ के नवंबरमें अवसान हो गया। यह बात बड़े खेदकी हुई ( इनकापूरा हाल जाननेको ‘जैनरत्न उत्तरार्द्ध श्वेतांबर स्थानकवासी जैन पेन १ से १२ तक देखो ) २-डॉ. पुन्शी हीरजी मैशरी सन १९३३ में बंबईकी म्युनिसिपल कोर्पोरेशनकी स्टेडिंग कसेटीके प्रमुख ( Chair man ) चुने गये थे। यह मान मात्र इन्हींको, जैनोंमें सबसे पहले मिला था। (देखो-जै. र. उ. श्वे. जै. पेज २३-२७ ) ___३-बड़े खेदके साथ लिखना पड़ता है कि सेठ चाँपसी भाराकी कंपनीकी जाहोजलाली अब पहलेसी नहीं रही है; परंतु उन्होंने जो धर्मकार्य किये हैं वे कायम हैं। प्रत्येक जाहोजलालीवाले सदग्रहस्थको इससे सबक लेना चाहिए और अपनी बढ़तीके समय जितना हो सके उतना धर्मकार्य कर लेना चाहिए। (देखो-जै. र. उ. श्वे. स्था. जै. पेज २९-३२) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy