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________________ (ड) दृष्टिसे और उन्होंने समाज या देशके लिए क्या क्या कार्य तनसे, मनसे या धनसे, किये हैं उनका दिग्दर्शन करानेके इरादेसे दिया है। दोषदृष्टिको इसमें जगह नहीं दी गई है। दोष कषायोंसे होते हैं। कषायोंकी न्यूनाधिकताके अनुसार सभी साधारण मनुष्योंमें न्यूनाधिक प्रमाणमें दोष हैं । सज्जन दोषोंकी उपेक्षा करते हैं और गुणोंको अपनाते हैं । _ मैं जानता हूँ कि जैन समाजमें सैकड़ों ही नहीं हजारों-लाखों रत्न हैं। सन्नारियाँ भी हैं और सज्जन भी हैं। मगर जैनरत्नकी प्रथम जिल्दमें बहुत थोडोंका, जिनका थोडे श्रमसे प्राप्त हो सका परिचय है । भविष्यमें अधिकका परिचय देनेकी कोशिश की जायगी । ___ जैनरत्नकी दूसरी जिल्दमें हम चक्रवर्तियों, वासुदेवों प्रति वासुदेवों और बलदेवोंके चरित्र प्रकाशित करायँगे । फिर भगवान महावीर के बाद सिलसिलेवार इतिहास क्रमसे प्राचीन चरित्र प्रकाशित करानेका यत्न किया जायगा । उनमें जैनाचार्यों, जैनसाधुओं जैन राजाओं जैनमंत्रियों और प्रसिद्ध प्रसिद्ध श्रावकोंके चरित्र रहेंगे सुविधाके अनुसार इस क्रममें परिवर्तन भी किया जा सकेगा। ___ ऊपर जिनका उल्लेख किया गया है उनके चरित्र पूर्वार्द्ध में रहेंगे। उत्तरार्द्धमें सभी अर्वाचीन-वर्तमान जैन सज्जनों और सन्नारियोंके परिचय रहेंगे। हमारा इरादा है कि, नैनरत्न धीरे धीरे जैनसमाजका एक उत्तम चरित्र-कोश हो जाय । मगर यह तभी संभव है, जब जैन सज्जन मेरी मदद करें। इसकी योजना विस्तार पूर्वक ग्रन्थके अंतमें दी गई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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