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________________ २२ श्री नेमिनाथ-चरित २४५ बरात रवाना हुई । अरिष्टनेमिका वह अलौकिक रूप देखकर सब मुग्ध हो गये । स्त्रियाँ ठगीसी खड़ी उस रूपमाधुरीका पान करने लगी। बरात मथुराकी सीमामें पहुँची । राजीमतीको खबर लगी। वह शृंगार अधूरा छोड़ बरात देखनेके लिए छतपर दौड़ गई। गोधूलिका समय था । अस्त होते हुए सूर्यकी किरणें नेमिनाथजी के मुकुटपर गिरकर उनके मुखमंडलको सूर्यकासा तेजोमय बना रहा था। राजीमती उस रूपको देखने में तल्लीन हो गई। वह पासमें खड़ी सखि-सहेलियोंको भूल गई, पृथवी, आकाशको भूल गई, अपने आपको भी भूल गई । उसके सामने रह गई केवल अरिष्टनेमिकी त्रिभुवन-मन-मोहिनी मूर्ति । बरात महलके पास आती जा रही थी और राजीमतीका हृदय आनंदसे उछल रहा था। उसी समय उसकी दाहिनी आँख और भुजा फड़कीं। राजीमती चौक पड़ी मानो किसीने पीठमें मुक्का मारा है । सखियाँ पास खड़ी थीं। एकने पूछा :-"बहिन ! क्या हआ ?" राजीमतीने गद्गद कंठ होकर कहा:-" सखि ! दाहिनी आँख और भुजाका फड़कना किसी अशुभकी सूचना दे रहा है । मेरा शरीर भयके मारे पानी पानी हुआ जा रहा है ।" सखियोंने सान्त्वना दी:-"अभी थोड़ी ही देरमें शादी हो जायगी। बहिन घबराओ नहीं। आँख तो बादीसे फड़कने लगी है। चलो अब नीचे चलें। बारात बिल्कुल पास आ गई है।" राजीमती बोली:--"ठहरो, बरातको और पास आ जाने दो; तब नीचे चलेंगी।" राजीमती फिर बरातकी तरफ देखने लगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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