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जैन-रत्न
पिताकी तो यह बात सुनकर बाँछे खिल जायँगी ।" पाँचवीं ने कहा:-" श्रीकृष्ण इस खुशीमें हजारों लुटा देंगे।" छठीने कहा:-"अब जल्दीसे हाँ कह दो वरना पढ़े मंत्र ?" अरिष्टनेमि बोले:-"जाओ, मुझे दिक न करो! तुम्हारी इच्छा हो सो करो" ___ सब दौड़ गई । कोई समुद्रविजयके पास गई, कोई माताजीके पास गई और कई श्रीकृष्णके पास गई । महलोंमें और शहरमें धूम मच गई। राजा समुद्रविजयने तत्काल श्रीकृष्णको कहीं सगाई और ब्याह साथ ही साथ नक्की कर आनेके लिए भेजा । श्रीकृष्ण मथुराके राजा उग्रसेनकी पुत्री राजीमतीके साथ सगाई कर आये और कह आये कि हम थोड़े ही दिनोंमें ब्याहका नकी कर लिखेंगे । तुम ब्याहकी तैयारी कर रखना ।
कृष्णके सौरीपुर आते ही समुद्रविजयने जोशी बुलाये और उन्हें कहा:-"इसी महीनेमें अधिकसे अधिक अगले महीनेमें ब्याहका मुहूर्त निकालो।" जोशीने उत्तर दिया:-"महाराज ! अभी तो चौमासा है। चौमासेमें ब्याह शादी वगैरा कार्य नहीं होते । समुद्रविजय अधीर होकर बोले:-" सब हो सकते हैं। वे क्या कहते हैं कि, हमें न करो । बड़ी कठिनतासे अरिष्टनेमि शादी करनेको राजी हुआ है । अगर वह फिर मुकर जायगा तो कोई उसे न मना सकेगा।" ___ जोशीने,-"जैसी महाराजकी इच्छा ।" कहकर सावन सुदि ६ का मुहूर्त निकाला। घर घर बांदनवार बँधे और राजमहलोंमें ब्याहके गीत गाये जाने लगे । ब्याहवाले दिन बड़ी धूमके साथ
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