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________________ २४६ जन-रत्न rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.nn नेमिनाथका रथ ज्योंही महलके पास पहुँचा त्योही उनके कानोंमें पशुओंका आक्रंदन पड़ा । वे चौंककर इधर उधर देखने लगे और बोले:-"सारथी! पशुओंकी यह कैसी आवाज आ रही है । " सारथीने जवाब दियाः-“यह पशुओंका आर्तनाद है । ये कह रहे हैं, हे दयालु ! हमें छुड़ाओ! हमने किसीका कोई अपराध नहीं किया। क्यों बेफायदा हमारे प्राण लिये जाते हैं ? " नेमिनाथजीने पूछा:- "इनके प्राण क्यों लिये जायँगे ? सारथीने जवाब दिया:-"आपके बरातियोंके लिए इनका भोजन होगा।" __ "क्या कहा ? मेरे ही कारण इनके प्राण लिये जायेंगे ? ऐसा नहीं हो सकता।" कहकर उन्होंने अपना रथ पशुशालाकी तरफ घुमानेका हुक्म दिया ।" सारथीने रथ पशुशालामें पहुँचा दिया । नेमिनाथजी रथसे उतर पड़े और उन्होंने पशुशालाका पीछेका फाटक खोल दिया। पशु अपने प्राण लेकर भागे । क्षण वारमें पशुशाला खाली हो गई। सभी स्तब्ध होकर यह घटना देखते रहे। नेमिनाथनी पुनः स्थपर सवार हुए और हुक्म दिया:-"सौरी पुर चलो । शादी नहीं करूँगा ।" सारथी यह हुक्म सुनकर दिग्मूढसा हो रहा । फिर आवाज आई,-" रथ चलाओ ! क्या देखते हो ?" सारथीने लाचार होकर रथ हाँका । समुद्र विजयजी, माता शिवादेवी, बंधु श्रीकृष्ण और दूसरे सभी हितैषियोंने आकर रथको घेर लिया। मातापिता रोने लगे। हितैषी समझाने लगे; मगर अरिष्टनमि स्थिर थे । श्रीकृष्ण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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