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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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कुछ दिनके बाद अपराजित वहाँसे मित्र सहित रवाना हुआ और कुंडिनपुर पहुँचा । वहाँ स्वर्णकमलपर बैठे देशना देते हुए एक मुनिको उसने देखा । उन्हें वंदनाकर वह बैठा और धर्मोपदेश सुनने लगा। देशना समाप्त होनेपर अपराजितने पूछा:" भगवन् मैं भव्य हूँ या अभव्य ? केवलीने जवाब दियाः"हे भद्र! तू भव्य है । इसी जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें बाईसवाँ तीर्थकर होगा और तेरा मित्र मुख्य गणधर होगा ।" यह सुनकर दोनोंको आनंद हुआ। ___ जनानंद नामके नगरमें जितशत्रु नामका राजा था। उसके धारिणी नामकी रानी थी। रत्नवती स्वर्गसे च्यवकर धारिणीके गर्भसे जन्मी । उसका नाम प्रीतिमती रखा गया। वह सब कलाओंमें निपुण हुई । उसके आगे अच्छे अच्छे कलाकार भी हार मानते थे । इसलिए उसके पिता जितशत्रुने प्रीतिमतीकी इच्छा जानकर सब जगह यह प्रसिद्ध कर दिया कि जो पुरुष प्रीतिमतीको जीतेगा उसीके साथ उसका ब्याह होगा । और अमुक समयमें इसका स्वयंवर होगा। उसीमें कलाओंकी परीक्षा होगी। ___ स्वयंवरमंडप सजाया गया । अनेक राजा और राजकुमार वहाँ जमा हुए । प्रीतिमतीने उनसे प्रश्न किये; परन्तु कोई जवाब न दे सका । अपराजित भी भेस बदले हुए वहाँ आ पहुँचा था। जब उसने देखा कि सब राजा लोग निरुत्तर हो गये हैं, तब उससे न रहा गया। वह आगे आया और उसने प्रीतिमतीके प्रश्नोंका उत्तर दिया। प्रीतिमती हार गई और उसने अपराजितके गलेमें वरमाला डाल दी। जितशत्रु चिन्तामें पड़ा,-अफ्सोस!
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