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________________ २३४ जैन-रत्न वह उदास बैठा था, उसी समय उसके सामने दो पुरुष आये और उसका नाम पूछा । उसने नाम बताया, तब वे बोले:"हम भुवनभानु नामक विद्याधरके नौकर हैं। हमारे राजाके कमलिनी और कुमुदिनी नामकी दो पुत्रियाँ हैं । उनके लिए अपराजित ही योग्य वर है । ऐसी बात निमित्तियाने कही थी। इसलिए अपराजितको लानेके लिए हमें हमारे मालिकने भेजा। हमने तुम्हें वनमें देखा और हम अपराजितको उठा ले गये; मगर अपराजित तुम्हारे बगैर मौन धारकर बैठा है । अब तुम चलो और हमारे स्वामीकी इच्छा पूरी करो।" विमलबोध आनंदपूर्वक उनके साथ गया। दोनों मित्र मिलकर बहुत खुश हुए। फिर भुवनभानुकी कन्याओंके साथ अपराजितकी शादी हो गई । कुछ दिनके बाद अपराजित वहाँसे भी रवाना हो गया। ___ दोनों मित्र आगे चले। और श्रीमंदिरपुर पहुँचे । वहाँ उन्होंने शहरम कोलाहल और उदासी देखे । पूछनेसे मालम हुआ कि यहाँके दयालु राजाके कोई छुरी मार गया है । उसका घाव प्राणहारी हो गया है । अनेक इलाज किये मगर अबतक कोई लाभ नहीं हआ। अब जान पडता है राजा न बचेगा। ___ अपराजितको दया आर्द । वह मित्र सहित राजमहलमें पहुँचा । उसने सूर्यकांतकी दी हुई ओषधि घिसकर लगाई और राजा अच्छा हो गया । राजाने उसका हाल जानकर अपनी कन्या रंभा उसके साथ ब्याह दी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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