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२२ श्री नेमिनाथ - चरित
चक्रवर्त्तीको विवाहका संदेशा कहलाया । श्रीसूरने संदेशा स्वीकारा और चित्रगति के साथ रत्नावलीका विवाह कर दिया । वह सुखसे दिन बिताने लगा ।
श्रीसूर राजाने चित्रगतिको राज्य देकर दीक्षा ले ली। चित्रगति न्याय से राज्य करने लगा । एक बार उसके आधीन एक राजा मर गया । उसके दो पुत्र थे । वे दोनों राज्यके 1 लिए लड़ने लगे । चित्रगतिने उनको समझाकर शांत किया । कुछ दिनके बाद उसने सुना कि दोनों भाई एक दिन लड़कर मारे गये हैं । इस समाचार से उसे संसारसे वैराग्य हो गया और उसने, पुरंदर नामक पुत्रको राज्य देकर, पत्नी रत्नवती और अनुज मनोगति तथा चपलगतिके साथ दमधर निके पास से दीक्षा ले ली ।
चिर काल तक तपकर चित्रगति महेन्द्र देवलोकमें परमर्द्धिक ४ चौथा भवदेवता हुआ । उसके दोनों भाई और उसकी पत्नी भी उसी देवलोकमें देवता हुए ।
पूर्व विदेहके पद्म नामक प्रांतमें सिंहपुर नामका अपराजित शहर था । उसमें हरिनंदी नामका राजा राज्य ५ पाँचवाँ भव करता था । उसके प्रियदर्शना नामकी रानी थी । चित्रगतिका जीव देवलोक से चयकर प्रियदर्शनाके गर्भ से जन्मा । उसका नाम अपराजित रखा गया ।
जब वह बड़ा हुआ तब, विमलबोध नामक मंत्री -पुत्रके साथ उसकी मित्रता हो गई । एक दिन दोनों मित्र घोड़ों पर सवार होकर फिरनेको निकले । घोड़े बेकाबू हो गये और
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