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________________ २३० जैन-रत्न ..AAPMA भागे हुए एक जंगलमें जाकर ठहरे । वे घोड़ोंसे उतरे और जंगलकी शोभा देखने लगे। उसी समय एक पुरुष 'बचाओ! बचाओ !' पुकारता हुआ आकर अपराजितके चरणों में गिर पड़ा । अपराजितने उसे अभय दिया। विमलवोध बोला:"कुमार ! बेजाने किसीको अभय देना ठीक नहीं है। कौन जाने यह पुरुष कुछ गुनाह करके आया हो।" . ___ अपराजित बोला:-"क्षत्रिय शरणमें आये हुएको अभय देते हैं । शरणागतके गुणदोष देखना क्षत्रियोंका काम नहीं है। उनका काम है केवल शरणमें आये हुएकी रक्षा करना ।" ___ इतनेहीमें 'मारो! मारो !' पुकारते हुए कुछ सिपाही आये और बोले:-" मुसाफिर ! इसे छोड़ दो। यह लुटेरा है ।" अपराजित बोला:-" यह मेरी शरणमें आया है । मैं इसे नहीं छोड़ सकता।" तब हम इसे जबर्दस्ती पकड़कर ले जायँगे।" कहकर एक सिपाही आगे बढ़ा । अपराजितने, तलवार खींच ली और कहा:-"खबरदार !आगे बढ़ा तो प्राण जायँगे।" सब सिपाही आगे आये और अपराजितपर आक्रमण करने लगे। अपराजित अपनेको बचाता रहा । जब सिपाहियोंने देखा कि इसको हराना कठिन है तो वे भाग गये । कौशलेशके पास जाकर उन्होंने फर्याद की। कौशलपतिने लुटेरेके रक्षकको पकड़ लाने या मार डालनेके लिए फौज भेजी । अपराजितने सैकड़ों सिपाहियोंको यमधाम पहुँचाया। उसके बलको देखकर सेना भाग गई । तब राजा खुद फौजके साथ आया । घुड़सवारों और हाथीसवारोंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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