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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
चित्रगति अपनी सेना लेकर शिवपुर गया । चित्रगति और कमलमें घोर युद्ध होने लगा ।
युद्धमें कमल हार गया, तब उसका पिता अनंगसिंह आया और उसने चित्रगतिको ललकारा, - " छोकरे ! भाग जा! नहीं तो मेरा यह खड्ड अभी तेरा सिर धड़ से जुदा कर देगा । " चित्रगतिने हँसकर विद्याबलसे चारों तरफ अंधेरा कर दिया; अनंगसिंहके पाससे खङ्ग छीन लिया और वह कुछ न कर सका । चित्रगति फिर सुमित्रकी बहनको लेकर वहाँसे चला गया । थोड़ी देर के बाद जब अंधेरा मिटा तब उसने चारों तरफ देखा तो मालूम हुआ कि चित्रगति तो चला गया है, वह पछताने लगा । फिर उसे मुनिके वचन याद आये कि, जो पुरुष तेरे हाथसे खड्ड छीनेगा वही तेरा जामाता होगा । मगर अब उसे वह कहाँ ढूंढता ? वह अपने घर गया ।
चित्रगतिने सुमित्रको इसकी बहिन लाकर सौंप दी । सुमित्रने उपकार माना । सुमित्र पहिले ही संसारसे उदास हो रहा था इस घटनाने उसके मनसे संसारकी मोहमाया सर्वथा निकाल दी और उसने सुयशा मुनिके पाससे दीक्षा ले ली । चित्रगति I । अपने देशको चला गया ।
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सुमित्र मुनि अनेक बरसों तक विहार करते हुए मगध देशमें आये और एक गाँव के बाहर एकान्त में कायोत्सर्ग करके - रहे । सुमित्रका सापत्न भाई पद्म- जो सुमित्रके गद्दी बैठनेपर देश छोड़कर चला गया था - भटकता हुआ वहाँ आ निकला । उसने सुमित्र मुनिको अकेले देखा । उसे विचार आया, - यही
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