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________________ जैन - रत्न रके कातर वचनोंमें कृतज्ञता प्रकट की और कुछ दिन अपने यहाँ रहनेकी उससे विनती की । चित्रगति ठहरनेमें अपनेको असमर्थ बता सुमित्रको अपना मित्र बना चला गया । I २२६ एक दिन उद्यानमें सुयशा नामक केवली पधारे । राजा परिवार सहित उनको वंदना करने गये | वंदना करके राजा यथास्थान बैठ गये । फिर हाथ जोड़ उनने पूछा: – “हे भगवन् ! मेरी दूसरी स्त्री भद्रा कहाँ पर गई ९ " केवली बोलेः – “ वह यहाँसे भागकर वनमें गई पर चोरोंने उसके आभूषण लूट लिये और उसे एक भीलको सौंप दिया । भीलने उसे एक वणिकको बेच दिया। वह रास्तेमें जा रही थी कि जंगलमें आग से जल गई और मरकर प्रथम नरकमें गई है । यह उसके बुरे कर्मोंका फल हैं । " - राजा सुग्रीवको वैराग्य हो गया । उसने उसी समय सुमिको राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली और केवली के साथ विहार किया । सुमित्र अपने स्थानको गया । सुमित्रकी बहिन कलिंग देशके राजाके साथ ब्याही गई थी । उसको अनंगसिंह राजाका पुत्र, रत्नावतीका भाई कमल, हरकर ले गया । इस समाचारसे सुमित्र बहुत क्रुद्ध हुआ और वह युद्धकी तैयारी करने लगा । यह खबर एक विद्याधरके मुखसे चित्रगतिने सुनी । तब चित्रगतिने उसीके साथ यह संदेशा सुमित्रके पास भेजा: - " हे मित्र ! आप कष्ट न करें । मैं थोड़े ही दिनों में आपकी बहिनको छुड़ा लाऊँगा ।" फिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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