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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित २०५ प्रीति थी इससे इन चारोंका समागम हुआ है। वसन्तदेवके साथ केसराका ब्याह हुआ है और कामपालके साथ मदिराका। दोनों दम्पति अभी विद्यमान हैं और यहीं मौजूद हैं। ___ इतनी कथा कहकर भगवानने फिर आगे कहना आरंभ कियाः" हे राजा ! पूर्व जन्मके स्नेहके कारण तुम्हें जो पाँच अद्भुत वस्तुओंकी भेट मिलती थी उनका उपयोग तुम नहीं कर सकते थे । अब अपने मित्रोंके साथ तुम उन वस्तुओंका उपभोग कर सकोगे । इतने दिनोंतक इष्ट मित्रोंको न जाननेसे तुम पदार्थों के उपभोगसे वंचित रहे थे।" ___ वसंत, केसरा, कामपाल और मदिराने भी ये बातें सुनीं। वे कुरुचंद्रसे मिले । कुरुचंद्र उनको अपने घर ले गया और बड़ा आदर सत्कार किया। __ केवलज्ञानसे लगाकर निर्वाणके समय तक भगवान शान्तिनाथके परिवारमें, ६२ गणधर, बासठ हजार आत्म नैष्ठिक मुनि, इकसठ हजार छ: सौ सध्वियाँ, आठ सौ चौदह पूर्वधारी महात्मा, तीन हजार अवधिज्ञानी, चार हजार मनःपर्यवज्ञानी, चार हजार तीन सौ केवलज्ञानी, छः हजार वैक्रिय लब्धिवाले, दो हजार चार सौ वादलब्धिवाले, दो लाख नब्वे हजार श्रावक और तीन लाख तरानवे हजार श्राविकाएँ थीं। भगवानने अपना निवार्णकाल समीप जान समेतशिखर. पर पदार्पण किया : यहाँ नौ सौ मुनियोंके साथ अनशन किया एक मासके अन्तमें ज्येष्ठ मासकी कृष्णा त्रयोदशीके दिन भरणी नक्षत्रमें भगवान शान्तिनाथ उन मुनियोंके साथ मोक्ष गये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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