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________________ जैन-रत्न प्रति दिन पाँच अद्भुत वस्त्र और फलादि चीजें भेट स्वरूप क्यों मिलती हैं ? मैं इन वस्तुओंका भोग क्यों नहीं कर सकता हूँ? क्यों इन्हें इष्ट जनोंके लिए रख छोड़ता हूँ ?" भगवानने उत्तर दिया:-" तुम्हें साम्राज्य लक्ष्मी मिली है इसका कारण यह है कि तुमने पूर्व जन्ममें एक मुनिको दान दिया था। फिर भगवानने विस्तार पूर्वक उसके पूर्वजन्मका वृत्तान्त इस तरह कहना आरंभ कियाः-" भरतक्षेत्रके कौशल देशमें श्रीपुर नामक एक नगर था । उसमें सुधन, धनपति, धनद और धनेश्वर ये चार एकसी उम्रवाले वणिक पुत्र रहते थे। एक समय ये चारों मित्र परदेशमें द्रव्योपार्जन करनेके लिए अपने घरसे रवाना हुए । उनके साथमें भोजनका सामान लेनेवाला द्रोण नामक एक सेवक था । मार्गमें जाते २ उन्हें एक वनमें एक मुनिका समागम हुआ। उन्होंने अपने भोजनमेंसे थोड़ा मुनि महाराजको देनेके लिए द्रोणसे कहा । द्रोणने बड़ी श्रद्धासे मुनिजीको प्रतिलाभितकर आहार दिया। वहाँसे सब रत्नद्वीपमें पहुँचे और बहुतसा द्रव्योपार्जन कर अपने देशको लौटे । द्रोण धर्मकरणी करके मरा। हस्तिनापुरमें राजाके यहाँ जन्मा । वही द्रोण तुम कुरुचन्द्र हो । चारोंमेंसे सुधन और धनद भी मरकर वणिक पुत्र हुए हैं। उनमेंसे मुधन कंपिलपुरमें पैदा हुआ है और धनद कृत्तिकापुरमें । पहलेका नाम है वसंतदेव और दूसरेका नाम है कामपाल | धनपति और धनेश्वर मायाचारी थे इस लिए वे मरकर स्त्रीरूपमें वणिकके घर जन्मे हैं। उनका नाम मदिरा और केसरा हैं। पूर्व भवमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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