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________________ २०६ जैन - रत्न इन्द्रादि देवोंने निर्वाण - कल्याणके किया । भगवानने पचीस हजार वर्ष कौमारावस्था में, पचीस हजार वर्ष युवराजावस्था में, पचीस हजार वर्ष राजपाटपर और पचीस हजार वर्ष मुनिवस्थामें, इस तरह एक लाख वर्षकी आयु भोगी । उनका शरीर चालीस धनुष ऊँचा था । धर्मनाथजीके निर्वाण बाद पौन पल्योपम कम तीन सागरो A पम बीते तव शान्तिनाथ भगवान मोक्षमें गये । १७ श्री कुन्थुनाथ - चरितं श्री कुन्थुनाथो भगवान्, सनाथोऽतिशयार्द्धिभिः । सुरासुरनृनाथाना, - मेकनाथोस्तु वः श्रिये ।। भावार्थ - जिसको चौतीस अतिशयोंकी ऋद्धि प्राप्त हैं और जो इन्द्रों और राजाओंके नाथ हैं वे श्रीकुन्थुनाथ भगवान तुम्हारा कल्याण करें । 1 जंबूद्वीप के पूर्व विदेह में आवर्त्त नामक देश है । उसमें खड्गी नामकी नगरी थी । उसका राजा १ प्रथम भव सिंहावह था । संसारसे वैराग्य होनेके कारण उसने संवराचार्य के पास से दीक्षा ले ली। बीस स्थानककी आराधनाकर उसने तीर्थकर गोत्र बाँधा २ दूसरा भव अन्तमें मरकर वह सर्वार्थसिद्धि विमानमें अहमिन्द्र देव हुआ । १ - - ये चक्रवर्ती भी हुए हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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