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________________ १९२ जैन-रत्न वैर याद आया। वह एक बहुत बड़ा पर्वत उठा लाया और उसे उसने बनायुद्धपर डाल दिया । वन्नायुद्धको भी उसने नागपाशसे बाँध लिया। वनवृषभनाराच सहननके धारी वज्रायुद्धने उस पर्वतके टुकड़े कर डाले, नागपाशको छिन्नभिन्न कर दिया और आप सुखपूर्वक अपनी राणियों सहित बाहर आया। विद्युद्दष्ट्र अपनी शक्तिको तुच्छ समझ वहाँसे चला गया। उसी समय ईशानेन्द्र नंदीश्वरद्वीप जाते हुए उधरसे आ निकला और वज्रायुद्धके जीव भावी तीर्थंकरकी पूजा कर चला गया। वज्रायुद्ध अपने परिवार सहित नगरमें आया । राजा क्षेमंकरको लोकांतिक देवाने आकर दीक्षा लेनेकी मूचना की। उन्होंने वनायुद्धको राज्य देकर दीक्षा ली और तपसे घातिया कर्मोंका नाशकर वे जिन हुए। वज्रायुद्धके अस्त्रागारमें चक्ररत्न उत्पन्न हुआ । फिर दूसरे तेरह रत्न भी क्रमशः उत्पन्न हुए। उसने छ: खंड पृथ्वीको जीता और फिर अपने पुत्रको युवराजपदपर स्थापित कर वह मुखसे राज्य करने लगा। एक बार वे राजसभामें बैठे थे तब एक विद्याधर 'बचाओ, बचाओ' पुकारता हुआ उनके चरणों में आगिरा । वजायुद्धने उसको अभय दिया। उसी समय वहाँ तलवार लिए हुए एक देवी और खाँडा हाथमें लिए हुए एक देव उसके पीछे आये। देव बोला:--" हे नृप ! इस दुष्टको हमें सोपिए ताके हम इसे. इसके पापोंका दंड दें । इसने विद्या साधती हुई मेरी इस पुत्रीको आकाशमें उठा लेजाकर घोर अपराध किया है । " वज्रायुद्धने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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