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________________ १६ श्री शांतिनाथ - चरित १९३ उन्हें उनके पूर्वजन्मकी बातें बताईं । इससे उन्होंने वैर भावको छोड़ दिया और मुनिके पाससे दीक्षा ले ली । फिर वज्रायुद्ध चक्रीने भी कुछ कालके बाद अपने पुत्र सहस्रायुद्धको राज्य देकर क्षेमंकर केवलीके पाससे, दीक्षा ली । सहस्रायुद्धने भी कुछ काल बाद पिहिताश्रव मुनिके पाससे दीक्षा ली । अंत में दोनों राजमुनियोंने इषत्प्राग्भार नामके पर्वत पर जाकर पादोपगमन अनशन किया । आयुको पूर्णकर दोनों मुनि परम समृद्धिवाले तीसरे ग्रैवे९ वाँ भव कमें अहमिंद्र हुए और पचीस सागरोपमकी ( अहमिंद्र देव ) आयु वहाँ पूरी की । । जंबूद्वीपके पूर्व विदेहके पुष्कलावती प्रांत में सीतानदीके किनारे पुंडरीकिणी नामकी नगरी थी । उसमें धनरथ १० दसवाँ भव नामका राजा राज्य करता था । उसके प्रियमती ( मेघरथ ) और मनोरमा नामकी दो पत्नियाँ थीं । वज्रायुद्धका जीव ग्रैवेयक विमानसे च्यवकर महादेवी प्रियमतीकी कोख से जन्मा और सहस्रायुद्धका जीव च्यवकर मनोरमा देवी के गर्भ से जन्मा । दोनोंके नाम क्रमशः मेघरथ और दृढरथ रखे गये । जब दोनों जवान हुए तब उनके व्याह सुमंदिरपुर के राजा निहतशत्रुकी तीन कन्याओं के साथ हुए । मेघरथके साथ जिनका ब्याह हुआ उनके नाम प्रियमित्रा और मनोरमा थे और दृढरथके साथ जिसका व्याह हुआ उसका नाम सुमति था । १३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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