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________________ १६ श्री शांतिनाथ-चरित १९१ www. www ... प्रत्यक्ष प्रमाणसे विपरीत ऐसे वचन क्या बोलते हैं ? आपको आपके पूर्व जन्मके सुकृतोंका फल स्वरूप जो वैभव मिला है उसका विचार, अपने अवधिज्ञानका उपयोग कर कीजिए तो आपको मालूम होगा कि, आपका कहना युक्तियुक्त नहीं है। गये भवमें आप मनुष्य थे और इस भवमें देवता हुए हैं। अगर परलोक और जीव न होते तो आप मनुष्यसे देव कैसे बन जाते ?" देव बोला:-" तुम्हारा कहना सत्य है । आज तक मैंने कभी इस बातका विचार ही न किया और कुशंकामें पड़ा रहा । आज मैं तुम्हारी कृपासे सत्य जान सका हूँ। मैं तुमसे खुश हूँ । जो चाहो सो माँगो।" वज्रायुद्ध बोला:-"मैं आपसे सिर्फ इतना चाहता हूँ कि आप हमेशा सम्यक्त्वका पालन करें।" देव बोला:--" यह तो तुमने मेरे ही स्वार्थकी बात कही है । तुम अपने लिए कुछ माँगो।" वज्रायुद्ध बोला:--" मेरे लिए बस इतना ही बहुत है।" वज्रायुद्धको निःस्वार्थ समझकर देव और भी अधिक खुश हुआ। वह वज्रायुद्धको दिव्य अलंकार भेटमें देकर ईशानदेवलोकमें गया और बोला:--"वज्रायुद्ध सचमुच ही सम्यक्त्वी है।" __एक बार वसंत ऋतुमें क्रीडा करने वनमें गया। वहाँ वह जब अपनी सात सौ राणियोंके साथ क्रीडा कर रहा था तब, विद्युदंष्ट्र नामका देवता-जो वज्रायुद्धका पूर्वजन्मका वैरी दमितारी था और जो अनेक भवोंमें भटककर देव हुआ थाउधरसे निकला । वज्रायुद्धको देखकर उसे अपने पूर्व भवका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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