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________________ १७२ जैन-रत्न वैसे अशनिघोष बढ़ते जाते थे और वे श्रीविजयकी फौजका संहार करते जाते थे। इस तरह युद्धको एक महीना बीत गया। श्रीविजय अशनिघोषकी इस मायासे व्याकुल हो उठा । ____ अमिततेज जानता था कि अशनिघोष बड़ा ही विद्यावाला है। इसलिए वह परविद्याछेदिनी महाज्वाला नामकी विद्या साधनेके लिए हिमवंत पर्वतपर गया । अपने पराक्रमी पुत्र सहस्ररश्मिको भी साथ लेता गया। वहाँ एक महीनेका उप वास कर वह विद्या साधने लगा । उसका पुत्र जाग्रत रहकर उसकी रक्षा करने लगा।। विद्या साधकर अमिततेज ठीक उस समय चमरचंचा नगरमें आ पहुँचा जिस समय श्रीविजय अशनिघोषकी मायासे व्याकुल हो रहा था। अमिततेजने आते ही महाज्वाला विद्याका प्रयोग किया। उससे अशनिघोषकी सारी सेना भाग गई । जो रही वह अमिततेजके चरणोमें आ पड़ी। अमिततेज प्राण लेकर भागा । महाज्वाला विद्या उसके पीछे पड़ी। अशनिघोष भरतार्द्धमें सीमंत गिरिपर केवलज्ञान प्राप्त बलदेव मुनिकी शरणमें गया। अशनिघोषको केवलीकी सभामें बैठा देख महाज्वाला वापिस लौट आई। कारण- केवलीकी सभामें कोई किसीको हानि नहीं पहुंचा सकता है।' महाज्वालाके मुखसे बलदेव मुनिको केवलज्ञान होनेकी बात सुनकर अमिततेज, श्रीविजयादि सभी विमानमें बैठकर केवलीकी सभाम गये सुताराको भी वे अपने साथ लेते गये थे । अशनिघोष भाग गया था तब उन्होंने सुताराको पीछेसे बुला ली थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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