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________________ १६ श्री शांतिमाथ-चरित १७१ देकर अपनी फूफीको छुड़ा लाओ। युद्धमें पीठ मत दिखाना । जीतकर लौटना या युद्ध में लड़कर प्राण देना" __ श्रीविजय सहस्रावधी सेना लेकर चमरचंचा नगरी पर चढ़ गया। उसने नगरको घेर लिया और अशनिघोषके पास दूत भेजा। दूतने जाकर अशनिघोषको कहा:-" हे दुष्ट ! चोरकी तरह तु हमारी स्वामिनी सुताराको हर लाया है । क्या यही तेरी वीरता और विद्या है ? अगर शक्ति हो तो युद्धकी तैयारी कर अन्यथा माता सुताराको स्वामी श्रीविजयके सपुर्द कर उनसे क्षमा माँग ।" __ अशनिघोषने तिरस्कारके साथ दूतको कहा:-" तेरे स्वामीको जाकर कहना, अगर जिंदगी चाहते हो तो चुपचाप यहाँसे लौट जाओ। अगर सुताराको लेकर जानेहीका हट हो ता मेरी तलवारसे यमधामको जाओ और वहाँ सुताराकी इन्तजारी करो।" दूतने आकर अशनिघोषका जवाब सुनाया। श्रीविजयने रणभेरी बजवा दी । अशनिघोषके पुत्र युद्ध के लिए आये । अमिततेजके पुत्रोंने उन सबका संहार कर दिया। यह सुनकर अशनिघोष आया और उसने अमिततेजके पुत्रोंका नाश करना शुरू किया। तब श्रीविजय सामने आगया। उसने अशनिघोषके दो टुकड़े कर दिये । दो टुकड़ेंके दो अशनिघोष हो गये । श्रीविजयने दोनोंके चार टुकड़े कर डाले तो चार अशनिघोष हो गये। इस तरह जैसे जैसे अशनिघोषके टुकड़े होते जाते थे वैसे ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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