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________________ १७० जन-रत्न wmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmar यह हाल सुनकर श्रीविजयका दुःख क्रोधमें बदल गया । उसकी भ्रकुटि तन गई। उसके होंठ फड़कने लगे। वह बोला:"दुष्टकी यह मजाल ! चलो मैं इसी समय उसे दंड दूंगा और सुताराको छुड़ा लाऊँगा।" सांभन्नश्रोत बोला:-स्वामिन् आप हमारे स्वामी अमिततेजके पास चलिए । उनकी मददसे हम स्वामिनी सुताराको शीघ्र ही छुड़ाकर ला सकेंगे। अशनिघोष केवल बलवान ही नहीं है, विद्यावान भी है। वह जब बलसे हमको न जीत सकेगा तो विद्यासे हमें परास्त कर देगा। हमारे पास उसके जितनी विद्या नहीं है।" ___ श्रीविजयको संभिन्नश्रोतकी बात पसंद आई। वह विद्याधरोंके साथ वैताढ्य पर्वतपर गया। अमिततेजने बड़े आदरसे उसका स्वागत किया और इस तरह आनेका कारण पूछा । संभिन्नश्रोतने अमित तेजको सारी बातें कहीं । सुनकर अमिततेजकी आँखें लाल हो आईं। उसके पुत्र क्रुद्ध होकर बोले:-"दुष्टकी इतनी हिम्मत कि वह अमित तेजकी बहनका हरण कर जाय । पिताजी ! हमें आज्ञा दीजिए । हम जाकर दुष्टको दंड दें और अपनी फूफीको छुड़ा लावें ।" . अमिततजने श्रीविजयको शस्त्रावरणी ( ऐसी विद्या जिससे कोई शस्त्र असर न करे ) बंधनी ( बाँधनेवाली ) और मोक्षणी ( बंधनसे छुड़ानेवाली ) ऐसी तीन विद्याएँ दी और फिर अपने पुत्र रश्मिवेग, रविवेग आदिको फौज देकर कहा:"पुत्रो ! अपने फूफाके साथ युद्धमें जाओ और दुष्टको दंड Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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