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________________ १६ श्री शांतिनाथ - चरित १७३ जब केवली देशना दे चुके तब अशनिघोषने पूछा:-- “मेरे मनमें कोई पाप नहीं था तो भी सुताराको हर लानेकी इच्छा मेरी क्यों हुई ?" केवलीने सत्यभामा और कपिलका पूर्व वृत्तांत सुनाया और कहा :- " पूर्वभवका स्नेह ही इसका मुख्य कारणथा । " फिर अमिततेजने पूछा:- " हे भगवान ! मैं भव्य हूँ या अभव्य १" केवलीने उत्तर दिया :- " इससे नवें भवमें तुम्हारा जीव पाँचवाँ चक्रवर्ती और सोलहवाँ तीर्थकर होगा और श्रीविजय राजा तुम्हारा पहला पुत्र और पहला गणधर होगा ।" अशनिघोषने संसार से विरक्त होकर वहीं बलभद्र मुनिसे दीक्षा ले ली। अमिततेजादि अपनी अपनी राजधानियोंमें गये । फिर अनेक बरसों तक धर्मध्यान, प्रभुभक्ति, तीर्थयात्रा और व्रत संयम करते रहे। अंतमें दोनोंने दीक्षा ले ली । आयु समाप्तकर अमिततेज और श्रीविजय प्राणत नामके दसवें कल्पमें उत्पन्न हुए । वहाँ वे पाँचवाँ भव सुस्थितावर्त और नंदितावर्त नामके विमानके स्वामी मणिचूल और दिव्यचूल । बीस सागरोपमकी आयु उन्होंने नाम के देवता हुए सुखसे बिताई । छठा भव ( अपराजित बलदेव ) [ इसमें अनंत वीर्य वासुदेव और दमितारी प्रति वासुदेवकी कथा एँ भी शामिल हैं । ] इस जम्बूद्वीपमें सीता नदीके दक्षिण तटपर धनधान्य पूर्ण एवं समृद्धि शालिनी शुभा नामक एक नगरी थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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