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________________ जैन-रत्न २८ सागरोपमकी आयु पूर्ण कर छठे ग्रैवेयकसे चयकर नंदी षेणकाजीव बनारस नगरीके राजा प्रतिष्ठकी रानी ३ तृतीय भव पृथ्वीके गर्भ में, भाद्रपद वदि ८ के दिन अनुराधा ___ नक्षत्रमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक किया । साढ़े नौ मास बीतने पर पृथ्वी देवीने जेठ सुदि १२ के दिन विशाखा नक्षत्रमें स्वस्तिक लक्षण युक्त, पुत्रको जन्म दिया। इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक किया । शिशुकालको व्यतीत कर भगवान युवा हुए । अनेक राजकन्याओंसे उन्होंने शादी की। उनके साथ सुख भोगते हुए जब पाँच लाख पूर्व बीत गये तब राज्यपदको ग्रहण किया। राज्य करते हुए बीस लाख पूर्वांग अधिक १४ लाख पूर्व चले गये । तब लोकान्तिक देवोंने आकर दीक्षा लेनेकी विनती की। प्रभुने संवत्सरी दान किया और सहसाम्रवनमें जाकर जेठ सुदि १२ के दिन अनुराधा नक्षत्रमें दीक्षा ग्रहण की । इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक किया । दूसरे दिन राजा महेन्द्रके घर पर पारणा किया। नौ मासतक विहार करके फिर उसी वनमें आकर प्रभुने कायोत्सर्ग धारण किया और ज्ञानावरणादि कर्मोंको नष्टकर फाल्गुन वदि ८ के दिन विशाखा नक्षत्रमें केवलज्ञान पाया। इन्द्रादि देवोंने समोशरणकी रचना कर ज्ञानकल्याणक मनाया। भगवानका परिवार इस प्रकार था, ९५ गणधर, ३ लाख साधु, ४ लाख ३० हजार साध्वियाँ, २ हजार तीस चौदह पूर्व पारी, ९ हजार अवधिशानी, १५० मनःपर्ययज्ञानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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