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________________ ७ श्री सुपार्श्वनाथ चरित १३५ लाख पूर्व तक चारित्र पाला, और तब वे मोक्ष गये । उनका शरीर २५० धनुष ऊँचा था । सुमतिनाथके निर्वाणके बाद ९० हजार कोटि सागरोपम बीते, तब पद्मप्रभु मोक्षमें गये । ७ श्री सुपार्श्वनाथ - चरित -- श्रीसुपार्श्वजिनेन्द्राय, महेंद्रमहितांधये । नमश्वतुर्वर्ण संघ – गगनाभोग भास्वते ॥ - भावार्थ - साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस चतुर्विध संघरूपी आकाशके प्रकाशको फैलानेमें सूर्यके समान और इन्द्रोंने जिनके चरणोंकी पूजा की है ऐसे श्री सुपार्श्व जिनेंद्रको मेरा नमस्कार हो । घातकी खण्डके पूर्व विदेहमें क्षेमपुरी नामकी नगरी थी । उसमें नंदिषेण राजा राज्य करता था । उसको १ प्रथमभव संसार से वैराग्य हुआ और उसने अरिदमन नामक आचार्यके पास दीक्षा ली, कठिन महाव्रतोंको पाळा, तथा बीस स्थानककी आराधना कर तीर्थ - कर गोत्रका बंध किया । अन्त समयमें अनशन पूर्वक प्राणत्याग कर नंदिषेणका जीव छठे ग्रैवेयकमें देव हुआ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com २ द्वितीय भव
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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