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७ श्री सुपार्श्वनाथ चरित
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लाख पूर्व तक चारित्र पाला, और तब वे मोक्ष गये । उनका शरीर २५० धनुष ऊँचा था ।
सुमतिनाथके निर्वाणके बाद ९० हजार कोटि सागरोपम बीते, तब पद्मप्रभु मोक्षमें गये ।
७ श्री सुपार्श्वनाथ - चरित
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श्रीसुपार्श्वजिनेन्द्राय, महेंद्रमहितांधये । नमश्वतुर्वर्ण संघ – गगनाभोग भास्वते ॥
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भावार्थ - साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस चतुर्विध संघरूपी आकाशके प्रकाशको फैलानेमें सूर्यके समान और इन्द्रोंने जिनके चरणोंकी पूजा की है ऐसे श्री सुपार्श्व जिनेंद्रको मेरा नमस्कार हो ।
घातकी खण्डके पूर्व विदेहमें क्षेमपुरी नामकी नगरी थी । उसमें नंदिषेण राजा राज्य करता था । उसको १ प्रथमभव संसार से वैराग्य हुआ और उसने अरिदमन नामक आचार्यके पास दीक्षा ली, कठिन महाव्रतोंको पाळा, तथा बीस स्थानककी आराधना कर तीर्थ - कर गोत्रका बंध किया ।
अन्त समयमें अनशन पूर्वक प्राणत्याग कर नंदिषेणका जीव छठे ग्रैवेयकमें देव हुआ ।
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२ द्वितीय भव