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________________ १३४ जैन-रत्न ~~~~~~~~~ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm राजाओंके साथ छ? तप सहित (बेला करके) दीक्षा ली। इन्द्रीददेवोंने दीक्षाकल्याणकका उत्सव किया । दीक्षाके दूसरे दिन सोमसेनराजाके यहाँ पारणा किया। ___ छः मास विहार कर प्रभु पुनः सहसाम्र वनमें पधारे। वटवृक्षके नीचे उन्होंने कायोत्सर्ग धारण किया। और शुक्ल ध्यानपूर्वक घातिया कोंका नाशकर चैत्र सुदि १५ के दिन चित्रा नक्षत्रमें केवललक्ष्मी पाई। केवलज्ञान होनेपर देवोंने समोशरणकी रचना की। भगवानने भव्य जीवोंको उपदेश दिया। १०७ गणधर, ३ लाख ३० हजार साधु, ४ लाख २०. हजार साध्वियाँ, २ हजार तीन सौ चौदह पूर्वधारी, १० हजार अवधिज्ञानी, १० हजार तीन सौ मनःपर्ययज्ञानी, ४ हजार केवली, १६ हजार एक सौ आठ वैक्रियक लब्धिधारी, ९ हजार ६ सौ वादी, २ लाख ७६ हजार श्रावक और ५ लाख ५ हजार श्राविकाएँ इतना भगवानका परिवार था। कुसुम नामक यक्ष और अच्युता नामक शासन देवी थी। भगवानने दीक्षा लेनेके बाद छः मास सोलह पूर्वांग न्यून एक लाख पूर्व व्यतीत होनेपर मोक्षकाल समीप जान सम्मेद शिखरमें अनशन व्रत ग्रहण किया । एक मासके अन्तमें मार्गशीर्ष वदि ११ के दिन चित्रा नक्षत्रमें तीन सौ आठ मुनियोंके साथ भगवान मोक्ष पधारे । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक किया। प्रभुकी कुल आयु ३० लाख पूर्वकी थी, जिसमेंसे उन्होंने साढ़े सात लाख सोलह पूर्वाग तक कुमारावस्था भोगी, साढ़े इक्कीस लाख पूर्व तक राज्य किया, सोलह पूर्वाग. न्यून एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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