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________________ ६ श्री पद्मप्रभुचरित पाससे दीक्षा ली । चिस्काल तक तपश्चर्या करके कीस स्थानककी आराधना की । उसीके प्रभाक्से तीर्थकर गोत्रका उपार्जन किया। अन्तमें अपराजितने शुभ ध्यानपूर्वक प्राण छोडा, मर कर २ दसरा भव नवप्रवयकर्म देव हुआ। वहाँ ३३ सागरोपम ' तक सुख भोग आयु पूर्ण कर वह मरा। जंबूद्वीपमें भरतक्षेत्र है। उसमें कौशाम्बी नामकी नगरी थी। उसका प्रजापति धर था। उसकी रानीका नाम ३ तीसरा भव सुसीमा था। उसीके गर्भमें अपराजित राजाका जीव माघ वदि६ के दिन चित्रा नक्षत्रमें आया। इन्द्रादिक देवोंने गर्भकल्याणक किया । नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होनेपर कार्तिक वदि ११ के दिन चित्रा नक्षत्रमें प्रभुने जन्म धारण किया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक मनाया । सुसीमा देवीको गर्भ कालमें पद्मशय्या (कमलकी सेज) पर सोनेकी इच्छा हुई थी, इसीसे प्रभुका नाम पद्मप्रभु रखा गया । अनुक्रमसे बढ़ते हुए भगवान यौवनास्थाको प्राप्त हुए । पिताने उनको विवाह योग्य जानकर अनेक राजकन्याओंके साथ उनका विवाह कर दिया। उनके साथ साढ़े सात पूर्वतक भोग भोगे । अर्थात युवराज पदमें रहे । पीछे पिताने प्रभुका राज्यतिलक किया। साढ़े इक्कीस लाख पूर्व तक राज्य किया। इसके बाद लोकान्तिक देवोंने आकर प्रार्थना की:-" हे प्रभो ! अब दीक्षा धारण करके जमतके जीवोंका कल्याण कीजिये।" उन्होंने देवोंकी बात मान, संवत्सरी दान दे, कार्तिक यदि १३ के दिन चित्रा नक्षत्रमें सहसाम्रवनमें जाकर, एक हज़ार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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