________________
१३२
जैन-रत्न
मोक्षकाल निकट जान प्रभु सम्मेत शिखरपर गये । वहाँ एक हजार मुनियोंके साथ मासखमण कर रहे और चैत्र सुदि ९ के दिन पुनर्वसु नक्षत्रमें मोक्ष गये । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याण किया।
दस लाख पूर्व कौमारावस्थामें, उन्तीस लाख बारह पूर्वांग राज्यावस्थामें और बारह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व चारित्रावस्थामें इस तरह ४० लाख पूर्वकी आयु पूर्णकर सुमति नाथ प्रभु मोक्ष गये । उनका शरीर तीन सौ धनुष ऊँचा था। __ अभिनंदन प्रभुके निर्वाणके बाद ९ लाख करोड सागरोपभ बीते तब सुपति नाथ प्रभुका निर्वाण हुआ।
६ श्री पद्मप्रभुचरित
पद्मप्रभ प्रभोर्देह-मासः पुष्णंतु वः श्रियम् ।
अंतरंगारिमथने, कोपाटोपादिवारुणाः॥ भावार्थ-काम, क्रोधादि अंतरंग शत्रुओंका नाश करनेके कोपकी प्रबलतासे मानों पनप्रभुका शरीर लाल हो गया है वह लाली तुम्हारी लक्ष्मीका ( मोक्ष लक्ष्मीका ) पोषण करे। धातकी खण्डके पूर्व विदेहमें वत्स नामका नगर है । उसीमें
सुसीमा नामकी नगरी थी। उसका राजा अपरा१ प्रथम मव जिंत या । उसको, कोई कारण पाकर, संसारसे
वैराग्य हो गया । उसने पिहिताश्रय मुनिके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com