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________________ ८ श्री चंद्रप्रम-चरित १३७ १५ हजार ३ सौ वैब्रिक्क लब्धिधारी, ११ हजार केवली, ८ हजार ४ सौ वादी, २ लाख ५७ हजार श्रावक, ४ लाख ९३ हजार श्राविकाएँ, और मातंग नामक यक्ष, व शान्ता नामक शासन देवी। __ केवलज्ञान होनेके बाद नौ मास बीस पूर्वाग न्यून बीस लाख पूर्व व्यतीत होने पर निर्वाण काल समीप जान प्रभु सम्मेद शिवरपर पधारे । पाँच सौ मुनियोंके साथ उन्होंने एक मासका अनशन व्रत धारण किया । और फाल्गुन वदि ७ के दिन मूल नक्षत्रमें वे मोक्ष गये। इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक किया। सुपार्श्वनाथजीकी कुल आयु २० लाख पूर्वकी थी, उसमेंसे ५ लाख पूर्वतक वे कुमार रहे, १४ लाख पूर्व और २० पूर्वागतक उन्होंने राज्य किया। बीस पूर्वांग न्यून एक लाख पूर्वतक वे साधु रहे, बादको मोक्ष गये । उनका शरीर २०० धनुष ऊँचा था। __ पद्मप्रभुके निर्वाणके बाद ९०० कोटि सागरोपम बीते, तब सुपार्श्वनाथजी मोक्षमें गये । ८ श्री चंद्रप्रभ-चरित . सदैव संसेवनतत्परे जने, भवंति सर्वेऽपि सुराः सुदृष्टयः। समग्रलोके समचित्तवृत्तिना, त्वयैवसंजातमतो नमोऽस्तुते॥ __ भावार्थ-सभी देवता उन मनुष्योंपर कृपा करते हैं जो इमेशा उनकी सेवामें तत्पर रहते हैं। परन्तु सभी लोगोंपर (जो सेवा करते हैं उनपर भी और जो सेवा नहीं करते हैं उनपर भी) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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