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________________ ३ श्री संभवनाथ-चरित १२१ ~~morrrror एक बार वह छतपर बैठा हुआ था। संध्याका समय था । आकाशमें बदली छाई हुई थी। देखते ही देखते जोरकी हवा चली और बदली छिन्न भिन्न हो गई। उसने सोचा, इस बदलीकी तरह संसारकी सारी वस्तुएँ छिन्न भिन्न हो जायँगी, मौत हर घड़ी सिरपर सवार रहती है, वह न जाने किस समय धर दबायेगी । वह नहीं आती है तब तक आत्मकल्याण कर लेना ही श्रेष्ठ है। . दूसरे दिन विपुलवाहनने बहुत बड़ा दरबार किया, उसमें अपने पुत्रको राज्य सिंहासन पर बिठाया और फिर स्वयंप्रभसूरिके पास जाकर दीक्षा ले ली। राजमुनिने राज्यकी भाँति ही अनेक प्रकारके उपसर्ग सहते हुए भी संयमका पालन किया और २ दूसरा भव अन्तमेवे अनशन कर, मृत्यु, पा, आनत नामके नवे देवलोकमें उत्पन्न हुए। इसी जम्बूद्वीपके पूर्व भरता में श्रावस्ती नामका शहर था। ___ उसमें जितारी नामका राजा राज्य करता ३ तीसरा भव था। उसमें नामके अनुसार गुण भी थे। उसके सेनादेवी नामकी पटरानी थी । वह इतनी गुणवती थी कि, लोग उसको जितारीका सेनापति कहा करते थे । इसी रानीको फाल्गुन मासकी अष्टमीके दिन, मृगशिर नक्षत्रमें चन्द्रमाका योग आने पर चौदह स्वप्न आये । उसी समय विपुलवाहनका जीव अपनी देव-आयु पूर्णकर रानी सेनादेवीके गर्भमें आया। उस समय क्षण वारके लिए नारकियोंको भी सुख हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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