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________________ १२२ जैन-रत्न स्वप्न देखते ही देवी जागृत हुईं और उठकर राजाके पास गईं । राजाको त्वम सुनाये । राजाने कहा:-" हे देवी ! इन स्वप्नोंके प्रभावसे तुम्हारे एक ऐसा पुत्र होगा जिसकी तीन लोक पूजा करेंगे।" __इन्द्रोंका आसन काँपा । उन्होंने देवों सहित आकर गर्भकल्याणक किया। फिर एक इन्द्रने आकर सेनादेवीको नमस्कार किया और कहा:-" हे स्वामिनी ! इस अवसर्पिणी कालमें जगतके स्वामी तीसरे तीर्थंकर तुम्हारे घर जन्म लेंगे।" स्वामका अर्थ सुनकर महिषीको इतना हर्ष हुआ, जितना हर्ष मेघकी गर्जना सुनकर मयूरीको होता है। अवशेष रात उन्होंने जागकर ही बिताई। ___ जब नौ महीने और साढ़े सात दिन व्यतीत हुए तब सेनादेवीने जरायु और रुधिर आदि दोषोंसे वर्जित पुत्रको जन्म दिया । उनके चिन्ह अश्वका था। उनका वर्ण स्वर्णके समान था । उस दिन मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशीका दिन था, चन्द्रमा मृगशिर नक्षत्रमें आया था। जन्म होते ही तीन लोकमें अन्धकारको नाश करनेवाला प्रकाश हुआ। नारकी जीवोंको भी क्षण वारके लिए सुख हुआ। सारे ग्रह उच्च स्थानपर आये। सारी दिशायें प्रसन्न हो गईं । सुखकर मंद पवन बहने लगा, लोग क्रीडा करने लगे । सुगंधित जलकी दृष्टि हुई, आकाशमें दुंदुभि बजे, पवनने रज दूर की और पृथ्वीने शान्ति पाई। छप्पन कुमारियाँ आकर सेवा करने लगीं । इन्द्रोंके आसन. काँपे । उन्होंने आकर प्रभुका जन्मकल्याणक किया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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