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________________ (अः) राजा और महाराजा संस्कृत तथा प्राकृत प्रभृति भाषा के सर्वोच्च ज्ञाता होते थे । इस लिये उस समय में प्रत्येक प्रांत और देश में राजभाषाका व्यवहार संस्कृत प्राकृतादिका ही था । आज लाखों ग्रन्थ इस बात की साक्षी दे रहे हैं । बढ़ रहा आज राजभाषा सर्वत्र संस्कृत - प्राकृत हटकर इंग्लिश (English) देखने में आती है । इस लिये हर जगह इसी इंग्लिश भाषाका है । कुछ लोग संस्कृत - प्राकृत भाषाओंको ( Dead language ) मरी हुई भाषा कह रहे हैं । अर्थात इसके जाननेवाले अल्प संख्या में पाये जाते हैं । सर्वत्र राजभाषाका प्रचार तो वेगसे | लोकसमूह अपने निर्वाहके लिये राजभाषाको जितना आदर देता है उतना औरको नहीं देता । अपने अपने देशों में मातृभाषाएँ तो कायम ही हैं मगर आज जितनी वेगसे राजभाषाकी गति है उतनी ही वेगसे हिन्दी भाषा पहुँच रही है भारतके अधिक भागमें हिन्दी बोली जानेके कारण सुज्ञोंने इसका नाम राष्ट्रभाषा रखा है । यह बात बिलकुल सत्य है । इसलिये इंग्लिशसे दूसरे नंबर पर इसीका सर्वत्र आदर है । 1 इस राष्ट्रभाषा में जो ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं उनका आदर सब स्थानों में होता है । उनसे हर एक भाषा जाननेवाला लाभ उठा सकता है। इसलिये श्रीयुत वर्माजीने यह स्तुत्य प्रयास किया है । उन्होंने त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्ररूपी महासागरमें डुबकी लगाकर उसमें से २४ बहुमूल्य मोती निकाले हैं । अर्थात् तिरसठ महापुरुषों के चरित्रोंमेंसे २४ पुरुषोत्तम तीर्थंकरोंके चरित्र हिन्दीमें लिखे हैं । भाषा बड़ी ही सरल, रोचक और कोमल है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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