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________________ (अ) यह पद्धति आज कलका नहीं है। बहुत प्राचीन कालसे चली आती है । संसारमें देखा जाता है कि महाभारत एक लक्ष श्लोक. प्रमाण बनाया गया था । २४ सहस्र श्लोक प्रमाण रामायण रचा गया था । पीछेसे ऐसे विद्वान हुए कि जिन्होंने थोड़ेमें संपूर्ण सारयुक्त बाल भारत, और बाल रामायण इत्यादिक रचे और उनसे पढ़नेवालोंका बहुत ही उपकार हुआ । __इसी तरह कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराजने प्रायः छत्तीस हजार श्लोक प्रमाण त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र नामका तिरसठ. महापुरुषोंका सुन्दर जीवनवृत्तान्त-युक्त ग्रंथ बनाया। आचार्य श्रीहरिभद्र सूरिजी महाराजने संवेगरसपूर्ण श्रीसमरादित्य चरित्र हजारों, श्लोकोंके प्रमाणमें बनाया परन्तु यह सब बहुत विस्तृत होनेसे सभी लाभ उठा सकें इस विचारसे बाद में लघु त्रिषष्टिकी और संक्षेप समरादित्य चरित्रादिकी रचना की गई। इन सब प्रमाणोंसे सिद्ध होता है कि लोकरुचिको आदरपूर्वक ध्यानमें लेकर Short is sweet क अनुसार विस्तृत ग्रन्थ संक्षेपमें परन्तु भाव युक्त भाषामें रचे गये । इनसे समाज और भद्रिक आत्माआको बड़ा भारी लाभ हुआ । इसलिये थोड़ेमें अधिक जान सकें यह भावना आजकी नहीं परन्तु ऊपरके दृष्टान्तसे साफ प्रतीत होता है कि प्राचीन कालसे चली आती ह। उपर्युक्त प्रमाणोंसे ऐसा मानना आवश्यक है। प्राचीन साहित्य संस्कृत, प्राकृत, मागधी, और अपभ्रंशादि भाषाऑमें रचा हुआ अधिक देखनेमें आता है । इसका प्रधान कारण यह है कि ये भाषाएँ उस समय इसी तरह प्रचलित थीं जिस तरह आज हिन्दी, गुजराती, मराठी, मारवाडी, बंगाली वगैरा हैं। बड़े बड़े सम्राट. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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