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________________ श्रीआदिनाथ-चरित काला और रुक्ष हो गया है। उसके भरे हुए गाल और उसका विकसित वदन सूख गये हैं। उसका वह सूखा हुआ मुँह हर समय मेरी आँखोंके सामने फिरा करता है ! हाय ! मेरे लाल ! तेरी क्या दशा है ?" ___ भरतका भी हृदय भर आया । वे थोड़ी देर स्थिर रहे । आत्मसंवरण किया और फिर बोले:-" देवी ! धैर्यके पर्वत समान, वज्रके साररूप, महापराक्रमी, मनुष्योंके शिरोमणि, इन्द्र जिनकी सेवा करते हैं ऐसे मेरे पिताकी माता होकर आप ऐसा दुःख क्यों करती हैं ? वे संसार सागरको पार करनेके लिए उद्यम कर रहे हैं । हम उनके लिए विघ्न थे । इसीलिए उन्होंने हमारा त्याग कर दिया है । भयंकर जीवजन्तु उनको पीड़ा नहीं पहुँचा सकते । वे तो प्रभुको देखते ही पाषाणमूर्तिकी भाँति स्थिर हो जाते हैं। क्षुधा, तृषा, शीत, आताप और वर्षादि तो उनको हानि न पहुँचाकर उल्टे उनको, कर्म-शत्रुओंको नाश करनेमें, सहायता देते हैं। आप, जब उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होनेकी बात सुनेंगी तब मेरी बात पर विश्वास करेंगी।" ___ इतनेहीमें वहाँ यमक और शमक नामके दो व्यक्ति आए । यमकने नमस्कारकर निवेदन किया:-"महाराज ! आज पुरिमताल उपनगरके शकटमुख नामक उद्यानमें युगादि नाथको केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ है । " शमकने निवेदन कियाः-" स्वामिन् ! आपकी आयुधशालामें आज चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है।" __ भरत विचार करने लगे कि, पहिले मुझे किसकी पूजा करनी चाहिए । अन्तमें उन्होंने प्रभुकी ही पूजा करनेके लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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