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________________ श्रीआदिनाथ-चरित ७९ देखा था। मैंने खुदने भी शुद्ध आहार ग्रहण किया था। इसलिए मैं शुद्ध आहार देनेकी रीति जानता था । इसीसे मैंने प्रभुको शुद्ध आहार दिया और प्रभुने ग्रहण किया।" लोग ये बातें सुनकर प्रसन्न हुए और आनंदपूर्वक अपने घर चले गये । प्रभु वहाँसे विहारकर अन्यत्र चले गये । श्रेयांसकुमारने जिस स्थानपर प्रभुने आहार किया था वहाँ एक स्वर्ण-वेदी बनवाई और वह उसकी भक्तिभावसे पूजा करने लगा। एक बार विहार करतेहुए प्रभु बाहुबलि देशमें, बाहुबलिके तक्षशिला नगरके बाहिर उद्यानमें आकर ठहरे । उद्यान-रक्षकने ये समाचार बाहुबलिके पास पहुँचाए । बाहुबलि अत्यन्त हर्षित हुए। उन्होंने प्रभुका स्वागत करनेके लिए अपने नगरको सजानेकी आज्ञा दी । नगर सजकर तैयार हो गया। बाहुबलि आतुरतापूर्वक दिन निकलनेकी प्रतीक्षा करने लगे और विचार करने लगे कि, सवेरे ही मैं प्रभुके दर्शनसे अपनेको और पुरजनोंको पावन करूंगा। इधर प्रभु सवेरा होते ही प्रतिमास्थिति समाप्त कर (समाधि छोड़) पवनकी भाँति अन्यत्र विहार कर गये । ___ बाहुबलि सवेरे ही अपने परिवार और नगरवासियों सहित बड़े जुलूसके साथ प्रभुके दर्शन करनेको रवाना हुए। मगर उद्यानमें पहुँचकर उन्हें मालूम हुआ कि प्रभु तो विहार कर गये हैं। बाहुबलिको बड़ा दुःख हुआ। तैयार होकर आनेमें वक्त खोया इसके लिए वे बड़ा पश्चात्ताप करने लगे। मन्त्रियोंने उन्हें समझाया और कहा:-" प्रभुके चरणोंके वज्र, अंकुश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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