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________________ जैनज्योतिर्मन्यसंग्रहे उदयप्रभदेवीयायामारम्भसिद्धौ प्रथमविमर्श योगद्वारम् । ३५ उषा तभिा मघा उपयोगाः। रवि | सोम | मंगळ | बुध | गुरु | शुक्र | शनि १ आनंद | अश्विनी | मृगशिर| अश्लेषा| हस्त अनुराधा | २ कालदंड | भरणी | आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा । अभि | पूभा ३ प्राजापत्य पूफा | श्रवण | उभा ४ सुरोत्तम | रोहिणी पुष्य । उफा विशाखा) पूषा । धनिष्ठा| रेवती ५ सौम्य मृगशिर अश्लेषा हस्त अनुराधा| उषा शतभिषा अश्विनी ६ ध्वाक्ष आर्द्रा । | चित्रा | ज्येष्ठा | अभि | पूभा | भरणी ७ ध्वज पुनर्वसु पूफा | स्वाति | मूल | श्रवण | उभा | कृत्तिका ८ श्रीवत्स पुष्य उफा | विशाखा पूर्वाषाढा धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी ९ वज्र अश्लेषा | हस्त अनुराधा| उषा शतभिषा अश्विनी | मृगशिर १० मुद्गर मघा चित्रा | ज्येष्ठा | अभि | पूभा | भरणी | आर्द्रा ११ छत्र पूफा खाति | मूल | श्रवण | उभा | कृत्तिका | पुनर्वसु | १२ मित्र उफा विशाखा पूर्वाषाढा | धनिष्ठा| रेवती | रोहिणी | पुष्य १३ मनोज्ञ अनुराधा | उषा शतभिषा अश्विनी | मृगशिर अश्लेषा १४ कंप चित्रा ज्येष्ठा | अभि | पूभा | भरणी | आर्द्रा | मघा १५ लुंपक खाति श्रवण | उभा | कृत्तिका पुनर्वसु पूफा १६ प्रवास विशाखा पूषा धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी पुष्य | उफा |१७ मरण अनुराधा उषा शतभिषा अश्विनी मृगशिर अश्लेषा | हस्त |१८ व्याधि ज्येष्ठा | अभि | पूभा | भरणी| आो | मघा चित्रा |१९ सिद्धि श्रवण | उभा | कृत्तिका | पुनर्वसु | पूफा | खाति २० शूल पूर्वाषाढा| धनिष्ठा | रेवती | रोहिणीपुष्य | उफा विशाखा २१ अमृत उत्तराषाढा | शतभिषा अश्विनी मृगशिर| अश्लेषा | हस्त अनु २२ मुसल अभिजित् | पूभा | भरणी| आर्द्रा | मघा चित्रा | ज्येष्ठा २३ गज श्रवण | उभा | कृत्तिका पुनर्वसु | पूफा | खाति २४ मातंग धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी पुष्य । उफा |विशाखा पूषा २५ राक्षस शतभिषक् अश्विनी मृगशिर अश्लेषा | हस्त अनुराधा २६ चर | पूभा | भरणी| आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | अभि २७ स्थिर | उभा । कृत्तिका पुनर्वसु पूफा | खाति | मूल | श्रवण |२८ वर्धमान | रेवती | रोहिणी | पुष्य | उफा | विशाखा पूर्वाषाढा | धनिष्ठा | यत्प्रातिकूल्यं वाराणां तिथिनक्षत्रसंभवम् । हूणवंगखसेष्वेव तत्त्यजेदिति । 1 तिथिसंभवं यथा संवर्तककर्कयोगादौ। 2 नक्षत्रसंभवं यथा उत्पातमृत्युकाणो. पयोगादो। EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE | मूल | उषा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034864
Book TitleJain Jyotirgranth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamavijay
PublisherMulchand Bulakhidas Shah
Publication Year1938
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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