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जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. है कि उहडमंत्रीकी एक गाय जो अमृत सदृश दुद्धकी देने वालिथी वह लुणाद्री पहाडी के पास एक कैरका झाड था वहां जाते ही उसके स्तनोंसे स्वयं ही दुद्ध वहां ज्ञर जाता यहां क्या था कि चमुंडादेषि गयाका दुद्ध और वैलुरेतिसे भगवान् महा. वीर प्रभुका बिंब (मूत्ति) तय्यार कर रहीथी पहला सरिजी से देवीने अर्ज भी करदी थी तदानुस्वार सूरितीने संघसे कहाथा की मूर्ति तय्यार हो रही है पर संघने पहला जैनमू. त्तिका दर्शन न किया था वास्ते दर्शन की बडी आतुरता थी. पर सूरिजीने इस वातका भेद संघको नहीं दीया. इधर गायका दुद्धके अभाव मंत्रीश्वरने गवालियाको पुच्छा तो उसने कहा में इस बातको नहीं जानता हु कि गायका दुद्ध कमति क्यो होता है मंत्रीश्वरने पुन: पुनः उपालंभ देनेसे एकदिन गवाल गायके पीछे पीच्छे गया तो हमेशोंकी माफीक दुद्धको झरता देख मंत्रीको सब हाल कहा. दूसरे दिन खुर उहरमंत्री वहां गया सब हाल देखा और विचार किया कि यहांपर कोह दैव योग्य होना चाहिये गायको दूर कर जमीन खोदी तो वह क्या देखता है कि शान्तमुद्रा पद्मासनयुक्त वीतराग की मति दीख पडी मंत्रीश्वरने दर्शन फरसन कर वहा आनंद मनाया कि मेरेसे तो मेरी गाय ही बडी भाग्यशालनी है कि अपना दुद्धसे भगवान् का पक्षाल करा रही है खेर मंत्रीश्वर नगरमे आया राना और अन्योन्य विद्धानेसे सब हाल कहा बस फिर देरी ही क्याथी बडे समरोह यानि गामा बामाके साथ संघ एकत्र हो सूरिजी महारानके पास आये और अर्ज करी कि भगवान् मापकी कृपासे हमारा अहोभाग्य है कि हमने भगवान् के विषका दर्शन कीया और अब आप भी पधारेकी भगवान् को नगर प्रवेश करावे यह सब संघ भग.
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