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महावीर मूर्तिका दर्शन.
( ५१ ) वान के दर्शनोका पिपासु हो रहा है इत्यादि ? सूरिजीने सोचा at fie तय्यार होनेमें अभी सातदिनकी देरी है परन्तु दर्शनके लिए आतुर हुवा संघके उत्साहको रोकना भी तो उचित नहीं है, भवितव्यता पर विचार कर सूरिजी अपने शिष्य समुदाय के साथ संघमे सामिल हो जहां भगवान की मूर्ति थी वहां जा कर जमीन से बिंव निकलवा कर नमस्कार पूर्वक हस्तीपरारूढ करवा के धामधूम पूर्वक भगवान्का नगर प्रवेश करवाया संघमे बडाही आनंद मंगल और घरघर उत्सव वधामणा हुवा कारण पहला उन लोगोंने दिसक और विकारी देवि देवतों की मूर्तियोको देखी थी पर आज भगवान् की शान्त मुद्रा निर्विकार किसी प्रकारकी चेष्टा रहित पद्मासन मूर्ति देख लोगों की जैनधर्मपर और भी दृढ श्रद्धा होगई । ऊहडमंत्रीका बनाया हुवा महावीर मन्दिरके एक विभागमे भगवान् को विराजमान किया. यहांपर एक विशेष बात यह हुई कि देविने मूर्तिको सर्वांग सुन्दर बनाना प्रारंभ कियाथा अगर सात दिन और देर कि गई होती तो देविकी मनसा मुताबीक कार्य हो जाता पर आतुरता करनेसे भगवान् के हृदय पर निंबुफल जीतनी गांठो ( स्तनाकार ) रह गई इससे देवि नाराज हुई पर सूरिजी साथमें थे वास्ते उसका कोई जोर न चला " भवितव्यता बलवान् है "
इधर आश्विन मासकि नौरात्री नजदीक आने लगी तब संघाग्रेसर लोगोने सूरिजी से अर्ज करी कि हे प्रभो ! आप तो हमे कहते हो कि वगरह अपराध किसी जीत्रोंको तकलीफ नहीं देना पर हमारे यहां चमुंडादेबि एसी निर्दय है कि इस नौरात्रोमे प्रत्येक घर से एकेक भैसा और प्रत्येक मनुष्यसे
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