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राजगृहनगरमें श्रीमहावीरके स्वविरोसे चर्चा करके श्री महावीरका शासन अंगीकार करा. इसी तरे पार्श्वसंतानोये गंगेय मुनि तथा नदकपेमाल पुत्र मुनिने श्रीमहावीरका शासन अंगीकार करा. इन पुर्वोक्त आचार्योंके समयमे वैशालि नगरीका राजा चेटकादि और कृत्रियकुंमनगरके न्यातवंशी काश्यप गोत्री सिद्धार्थ राजादि श्रावक थे, और त्रिसलादि श्राविकायो थी. बुधधर्मके पुस्तकमें विशालि नगरीके राजाकों बुध के समयमें पा. पंम धर्मके मानने वाला अर्थात् जैनधर्मके मानने वाला लिखाहै, और बुधधर्मके पुस्तकमें ऐसान्नी लिखाहैकि एक जैनधर्मी बझे पुरुषकों बुधने अपने नपदेशसें बौः धर्मी करा, इस वास्ते श्रीम. हावीरसे पहिला जैनधर्म भरतर्षममें श्रीपार्श्वना. पके शासनसे चलता था.
प्र. उए-श्रीमहावीरजीसे पहिले तेवीसमें तीर्थकर श्रीपार्श्वनाथजी हुए है. इस कथनमें क्या प्रमाण है.
न.-श्रीपार्श्वनाथजीसें लेके आजपर्यंत श्री
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